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Explainer: ईरान की सड़कों पर महिलाएं क्यों कर रही हैं हिजाब का विरोध? जानें पूरी कहानी

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An Electronics & Communication engineer by training, Arjun switched to journalism to follow his passion. After completing a diploma in Broadcast Journalism at the India Today Media Institute, he has been debunking mis/disinformation for over three years. His areas of interest are politics and social media. Before joining Newschecker, he was working with the India Today Fact Check team.

ईरान में हिजाब के ख़िलाफ़ महिलाओं का प्रदर्शन सुर्खियों में है. ईरान में महिलाओं को हिजाब पहनना अनिवार्य है, लेकिन पिछले दिनों देश में कुछ ऐसा हुआ जिसने यहां की महिलाओं को हिजाब (Hijab) के खिलाफ सड़कों पर उतार दिया. हाल ही में ईरान में 22 साल की एक लड़की महसा अमिनी (Mahsa Amini) की कथित रूप से पुलिस हिरासत में मौत हो गई थी. अमिनी को ईरान की धार्मिक पुलिस (Morality police) ने हिजाब के नियमों को तोड़ने को लेकर गिरफ्तार किया था.

अमिनी की मौत के बाद ईरान (Iran) के अलग-अलग हिस्सों में सैकड़ों लोगों का गुस्सा फूट पड़ा और माहौल तनावपूर्ण हो गया. ईरानी मीडिया के मुताबिक, सुरक्षाबलों और प्रदर्शनकारियों की झड़प में 8 लोगों कि मौत हो चुकी है और कई घायल हैं.

इसके अलावा, सोशल मीडिया पर ईरानी महिलाओं के वीडियो भी वायरल हो रहे हैं, जिनमें वो हिजाब जलाकर अपना विरोध दर्ज कराती दिख रही हैं. यहां तक कि महिलाएं अमिनी की मौत के विरोध में अपने बाल भी काट रही हैं. बढ़ते विरोध को देखते हुए ईरान में इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.

कैसे हुई महसा अमिनी की मौत?

महसा अमिनी ईरान के कुर्दिस्तान (Kurdistan) प्रांत के सकेज (Saqez) शहर की रहने वाली थीं. 13 सितंबर 2022 को महसा अपने परिवार वालों के साथ सकेज से देश की राजधानी तेहरान जा रहीं थीं. इस दौरान तेहरान में उनको धार्मिक पुलिस ने नियमों के हिसाब से हिजाब ना पहनने पर गिरफ्तार कर लिया. खबरों में बताया गया है कि महसा ने ढीला हिजाब पहना था. नियमों के मुताबिक, ईरान में सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं को इस तरह से हिजाब पहनना होता है जिससे उनके बाल पूरी तरह‌ से ढक जाएं.

गिरफ्तारी के बाद महसा को पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां वह बेहोश हो गईं. तीन दिन तक कोमा में रहने के बाद उनकी मौत की खबर आई. कुछ चश्मदीदों का कहना है कि महसा को पुलिस वैन में बुरी तरह से पीटा गया था, जिसके चलते उनकी हालत खराब हो गई थी. पुलिस इन आरोपों का खंडन कर रही है, उनका कहना है कि महसा को दिल का दौरा पड़ा था. लेकिन पीड़ित के परिवार वालों ने इस बात से इंकार किया है और कहा है कि महसा बिल्कुल फिट थीं.

महसा की मौत के कुछ ही घंटों बाद तेहरान में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया. लोग ईरान की सरकार और वहां के सुप्रीम लीडर अली खामनेई के खिलाफ नारेबाजी करने लगे. धीरे-धीरे यह प्रदर्शन ईरान के कई शहरों तक पहुंच गया. प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के सुरक्षाबलों को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े.

मामला इतना बढ़ गया कि संयुक्त राष्ट्र ने भी महसा की मौत पर चिंता जताई और स्वतंत्र जांच की मांग की. सोशल मीडिया पर भी विश्वभर से यूजर्स महसा की मौत पर अपना गुस्सा जाहिर कर रहे हैं.

क्या है ईरान में महिलाओं के लिए ड्रेस कोड?

ईरान में 1979 में आई इस्लामिक क्रांति के बाद से महिलाओं के लिए एक ड्रेस कोड अनिवार्य किया गया. बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, ड्रेस कोड के हिसाब से ईरान में महिलाओं को अपना सिर ढकने के लिए हिजाब पहनना जरूरी है. ड्रेस कोड में महिलाओं को ढीले कपड़े पहनने का भी नियम है. देश में महिलाओं को ज्यादा मेकअप करने और अविवाहित पुरुषों से मिलने पर भी रोक टोक की जाती है.

क्या है ईरानी धार्मिक पुलिस “गश्त-ए-इरशाद”?

महिलाओं से ड्रेस कोड और अन्य नियमों का पालन करवाने के लिए ईरान में “गश्त ए इरशाद” नाम की धार्मिक पुलिस है. इस पुलिस के पास ड्रेस कोड ना पालन करने वाली महिलाओं पर कार्रवाई करने का अधिकार होता है. नियम तोड़ने वाले लोगों को सजा के तौर पर जुर्माना, जेल और यहां तक कि सरेआम कोड़े भी मारे जा सकते हैं. ईरान की इसी धार्मिक पुलिस पर महसा अमिनी को मारने का आरोप है. इससे पहले भी इस पुलिस पर ईरानी महिलाओं के साथ मारपीट और बर्बरता करने के कई आरोप लग चुके हैं.

1979 से पहले ऐसा नहीं था ईरान

1979 से पहले ईरान पर दशकों तक पहलवी सल्तनत ने शासन किया था. 1941 से 1979 तक मोहम्मद रजा पहलवी ईरान के शासक थे. उनको पश्चिमी संस्कृति का समर्थक व खुले विचारों वाला शासक माना जाता था. उनके राज में ईरान में महिलाओं पर अभी जैसी पाबंदियां नहीं थीं. यहां तक कि पहलवी के पिता रजा शाह ने 1936 में ईरान में हिजाब पहनने पर बैन लगा दिया था. उनके बेटे रजा पहलवी ने ईरान में पश्चिमी पहनावे को बढ़ावा दिया. उस समय ईरानी महिलाओं को मनचाहे कपड़े पहनने पर रोक-टोक नहीं थी.

लेकिन पहलवी के कई विरोधी भी थे, जो ईरान में बढ़ती पश्चिमी संस्कृति को सही नहीं मानते थे. साथ ही, पहलवी‌‌ के विरोधी ‌उनकी कुछ नीतियों और कुछ अन्य कारणों से भी उनसे सहमत नहीं थे. उनके विरोधियों में सबसे बड़ा नाम था अयातुल्लाह खोमैनी जो इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान के सुप्रीम लीडर भी बने. ईरान में पहलवी के खिलाफ विरोध बढ़ता गया, जिसने इस्लामिक क्रांति 1979 (Islamic Revolution) को जन्म दिया. 11 फरवरी 1979 में पहलवी शासन का अंत हुआ और ईरान की कमान धर्मगुरु अयातुल्लाह खोमैनी को मिल गई. इसी के साथ ईरान इस्लामिक गणतंत्र कहलाने लगा.

euronews की एक खबर में बताया गया है कि इस्लामिक क्रांति के बाद 1979 में आयतुल्लाह खोमैनी ने कहा था कि ईरान में महिलाओं को इस्लामिक ड्रेस कोड का पालन करना चाहिए. खोमैनी के इस बयान का ईरान में विरोध भी हुआ. लेकिन 1983 में इस पर कानून बना दिया गया और ईरान में महिलाओं के लिए हिजाब अनिवार्य हो गया.

महसा‌‌ अमिनी वाले मामले से पहले भी ईरान में कई बार हिजाब के विरोध में प्रदर्शन हो चुके हैं. कई सालों से देश में महिलाओं द्वारा हिजाब विरोधी आंदोलन भी चलाए जा रहे हैं. आंदोलन की वजह से ईरानी महिलाओं को जेल भी जाना पड़ा है.

भारत का हिजाब विवाद

आज यानी 22 सितंबर को खबर आई कि सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब विवाद पर सुनवाई पूरी कर ली है और अब फैसला सुरक्षित है. यह विवाद इस साल की शुरुआत में सामने आया था जब कर्नाटक के उडुपी के एक सरकारी कॉलेज में कुछ मुसलमान लड़कियों को क्लास में हिजाब पहनकर आने की अनुमति नहीं दी गई थी.

इसके बाद ये विवाद बढ़ता चला गया और हिंदू व मुस्लिम छात्र स्कूल-कॉलेजों में अपने-अपने धार्मिक चिन्ह जैसे हिजाब, भगवा गमछा आदि दिखाते नजर आए. कर्नाटक में कई जगहों से हिंसा की खबरें भी आईं.

हिजाब पर रोक के खिलाफ मुस्लिम छात्राएं कर्नाटक हाई कोर्ट पहुंची. अंतिम फैसला ना होने तक हाईकोर्ट ने स्कूल कॉलेजों में धार्मिक पोशाक पहनने पर रोक लगा दी. हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है, जिसका फैसला आना बाकी है. ईरान के हिजाब विवाद का जिक्र सुप्रीम कोर्ट में भी हुआ है. हाल ही में सरकार का पक्ष रख रहे सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई के दौरान कहा कि ईरान जैसे इस्लामिक देशों में भी महिलाएं हिजाब के खिलाफ लड़ रही हैं इसलिए हिजाब अनिवार्य नहीं है.


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An Electronics & Communication engineer by training, Arjun switched to journalism to follow his passion. After completing a diploma in Broadcast Journalism at the India Today Media Institute, he has been debunking mis/disinformation for over three years. His areas of interest are politics and social media. Before joining Newschecker, he was working with the India Today Fact Check team.

Arjun Deodia
Arjun Deodia
An Electronics & Communication engineer by training, Arjun switched to journalism to follow his passion. After completing a diploma in Broadcast Journalism at the India Today Media Institute, he has been debunking mis/disinformation for over three years. His areas of interest are politics and social media. Before joining Newschecker, he was working with the India Today Fact Check team.

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