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21 अगस्त को भारत के विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अमेरिकी प्रशासन के दावों के उलट राज्यसभा को बताया कि यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (USAID) ने भारत में “वोटर टर्नआउट” के लिए 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग नहीं दी थी. यह जानकारी सरकार ने अमेरिकी दूतावास से मिली जानकारी के आधार पर दी.
दरअसल इस साल फ़रवरी महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यूएस ऐड (United States Agency for International Development) की कड़ी आलोचना करते हुए कहा था कि यह काफ़ी खर्चीला और ग़ैरज़रूरी है. साथ ही इस दौरान उन्होंने यूएस ऐड के कई प्रोग्राम्स पर रोक भी लगा दी थी.
इससे ठीक पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के प्रशासन से जुड़े विभाग डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (DOGE) ने 16 फ़रवरी 2025 को एक X पोस्ट कर ऐसे यूएस ऐड प्रोग्राम का ज़िक्र किया था, जिन्हें रोक दिया गया था. इनमें से ही एक प्रोग्राम था, “भारत में मतदान को बढ़ाने के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर देना”.

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भी किया था भारत में वोटर टर्नआउट के लिए 21 मिलियन डॉलर खर्च किए जाने का दावा
DOGE के इस खुलासे के ठीक बाद मियामी में आयोजित एक कार्यक्रम में राष्ट्रपति ट्रंप ने भाषण देते हुए कहा था, “भारत में वोटर टर्नआउट के लिए 21 मिलियन डॉलर खर्च करने की क्या ज़रूरत है? शायद वे किसी और को चुनाव जितवाने की कोशिश कर रहे थे.” अमेरिकी राष्ट्रपति के इस बयान के बाद भारत में काफ़ी हंगामा हुआ. सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी कांग्रेस दोनों ने एक-दूसरे पर चुनाव प्रभावित करने के लिए विदेशी फंडिंग से लाभ उठाने का आरोप लगाया.

इस पूरे विवाद के बीच मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के सांसद डॉ. जॉन ब्रिटास ने 13 मार्च 2025 को राज्यसभा में विदेश मंत्रालय से इस संबंध में सवाल पूछा. इस दौरान उन्होंने सरकार से भारत में उपयोग किए गए यूएस फंड की जानकारी मांगी और साथ ही यह भी पूछा कि पिछले तीन सालों में सरकार को क्या यूएस ऐड के ख़र्च को लेकर अमेरिकी दूतावास से कोई जानकारी भी मिली है?.
सीपीएम सांसद के सवाल के जवाब में 21 अगस्त 2025 को विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने सिलसिलेवार तरीके से जवाब दिया और साथ ही उन्होंने यह भी जानकारी दी कि भारत में मौजूद किन-किन संस्थाओं को पिछले तीन सालों में यूएस ऐड फंड मिला है.

विदेश मंत्रालय ने डोनाल्ड ट्रंप के दावों का किया खंडन
अपने जवाब में विदेश राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने कहा कि 16 फ़रवरी 2025 को यू.एस. डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशिएंसी (DOGE) द्वारा भारत में “वोटर टर्नआउट बढ़ाने” के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर आवंटित किए जाने के खुलासे के बाद 28 फ़रवरी को भारत के विदेश मंत्रालय ने नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास से संपर्क किया. यह आग्रह किया गया कि वह तत्काल पिछले दस वर्षों में भारत में सभी USAID-सहायता प्राप्त परियोजनाओं पर किए गए व्यय की जानकारी दे.

आगे जवाब में कहा गया कि 2 जुलाई 2025 को अमेरिकी दूतावास ने 2014 से 2024 तक भारत में USAID फंडिंग की जानकारी साझा की. अमेरिकी दूतावास ने इस दौरान साफ़ किया कि “USAID/India ने 2014 से 2024 तक भारत में वोटर टर्नआउट के लिए 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कोई फंडिंग प्राप्त नहीं की और न ही उसने इससे जुड़ी कोई गतिविधि की.”
29 जुलाई 2025 को अमेरिकी दूतावास ने MEA को सूचित किया कि वह 15 अगस्त 2025 तक सभी USAID ऑपरेशन को समाप्त करने की योजना बना रहा है. 11 अगस्त 2025 को नई दिल्ली में अमेरिकी दूतावास ने आर्थिक मामलों के विभाग को एक पत्र लिखकर यह बताया कि भारत सरकार के साथ USAID को लेकर किए गए सभी सात साझेदारी समझौते 15 अगस्त 2025 से प्रभावी रूप से समाप्त हो जाएंगे.
जवाब में उन संस्थाओं के नाम भी मौजूद थे, जिन्हें 2022, 2023 और 2024 में यूएस ऐड की फंडिंग मिली थी. इनमें से कुछ संस्थाएं तिब्बती समुदाय से जुड़ी थीं.

इसके अलावा कुछ शैक्षिक, ऊर्जा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली संस्थाएं शामिल थीं. जिनके नाम आप नीचे मौजूद दस्तावेज़ में देख सकते हैं.

21 मिलियन डॉलर भारत में नहीं, बल्कि बांग्लादेश को आवंटित किए गए थे
जांच में हमें इंडियन एक्सप्रेस द्वारा 21 फरवरी 2025 को किया गया फैक्ट चेक मिला, जिसमें उन्होंने पाया था कि दरअसल जिस 21 मिलियन डॉलर फंड की बात हो रही है, वह भारत को नहीं बल्कि बांग्लादेश को दिया गया था.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, 21 मिलियन डॉलर के ये फंड कंसोर्टियम फॉर इलेक्शंस एंड पॉलिटिकल प्रोसेस स्ट्रेंथनिंग (CEPPS) के तीन सदस्य संगठनों, इंटरनेशनल फ़ाउंडेशन फ़ॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (IFES), इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टिट्यूट (IRI) और नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टिट्यूट (NDI) के माध्यम से दिए गए थे. इन्हें जुलाई 2022 से अक्टूबर 2024 के बीच बांटा गया था. जुलाई 2022 में फंड से चलने वाले प्रोजेक्ट का नाम ‘अमार वोट अमार’ था. बाद में नवंबर 2022 में यह बदल कर यूएसऐड नागरिक प्रोग्राम हो गया था. जुलाई 2025 तक इस ग्रांट के लगभग 13.4 मिलियन डॉलर खर्च हो गए थे.

डोनाल्ड ट्रंप का यह दावा कि भारत में वोटर टर्नआउट के लिए 21 मिलियन डॉलर आवंटित किए गए थे, यह आधिकारिक दस्तावेज़ और अमेरिकी दूतावास द्वारा भारत के विदेश मंत्रालय को दी गई जानकारी के आधार पर गलत साबित हुआ. यह घटना इस ओर इशारा करती है कि बिना जांच परख के वैश्विक नेताओं द्वारा किए गए दावे किसी चर्चा को कितना बदल सकते हैं और राजनीतिक सत्यनिष्ठा बनाए रखने के लिए फैक्ट चेक क्यों जरूरी हैं.