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Fact Sheets

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश के कोने–कोने में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। छात्र सड़कों पर उतरे हैं कहीं आगजनी हो रही है तो कहीं पुलिस–छात्रों के बीच टकराव। सोशल मीडिया, अख़बार, न्यूज़ चैनल सभी विरोध प्रदर्शन की तस्वीरों और वीडियो से भरे पड़े हैं। गृह मंत्री अमित शाह के संसद में यह साफ करने के बावजूद कि नागरिकता संशोधन कानून देश के नागरिकों के हितों को कमज़ोर नहीं करता, विरोध प्रदर्शन इतने उग्र क्यों हो गए?
13 दिसंबर को संसद ने जिस बिल को कानून बनाने के लिए पास किया वो आखिर है क्या इसे जानना बेहद जरूरी है ताकि किसी भी तरह कि गलतफहमी देश की जनता के बीच न फैले।
Citizenship Amendment Act यानि नागरिकता संशोधन कानून के मुताबिक बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदुओं के साथ ही सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइ बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल कर सकते हैं। इस कानून के तहत बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के शरणार्थियों के लिए निवास अवधि की बाध्यता को 11 साल से घटाकर 5 साल कर दिया गया है।


गृह मंत्री अमित शाह ने एक और बात संसद से कही थी और वो ये कि NRC राष्ट्रीय स्तर पर बनाया जाएगा। हालांकि ये कब से होगा इसका जिक्र उन्होंने नहीं किया। हाल ही में असम में हुए NRC में लगभग 19 लाख लोग अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए जिनमें से सबसे ज्यादा संख्या हिंदूओं की थी। NRC की इस पूरी प्रक्रिया में 1600 करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए।
1. 1971 की वोटर लिस्ट में खुद का या माँ–बाप के नाम का सबूत; या
2. 1951 में, यानि बँटवारे के बाद बने NRC में मिला माँ–बाप/ दादा दादी आदि का कोड नम्बर
1. नागरिकता सर्टिफिकेट
2. ज़मीन का रिकॉर्ड
3. किराये पर दी प्रापर्टी का रिकार्ड
4. रिफ्यूजी सर्टिफिकेट
5. तब का पासपोर्ट
6. तब का बैंक डाक्यूमेंट
7. तब की LIC पॉलिसी
8. उस वक्त का स्कूल सर्टिफिकेट
9. विवाहित महिलाओं के लिए सर्किल ऑफिसर या ग्राम पंचायत सचिव का सर्टिफिकेट

1979 में असम में हुए उप चुनाव के दौरान पता चला कि वोटरों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। लोगों ने छानबीन की तो पता चला कि ये संख्या इसलिए बढ़ी है क्योंकि इसमें बहुत से बांग्लादेशी शरणार्थियों को भी शामिल किया गया है। जिस पर संघर्ष बढ़ते-बढ़ते इतना बढ़ा कि 1979 से लेकर 1985 तक 2000 से ज्यादा बांग्लादेशी शरणार्थियों की हत्या कर दी गई। असम में बढ़ते आक्रोष के बाद 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असम समझौता किया था।

समझौते के मुताबिक 25 मार्च 1971 के बाद असम में आए विदेशियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर निकाला जाए। जबकि, दूसरे राज्यों से आए लोगों के लिए यह समय सीमा वर्ष 1951 निर्धारित की गई थी। अब नागरिकता संशोधन बिल-2019 (CAB) में नई समय सीमा 31 दिसंबर 2014 तय की गई है। जिसपर असम प्रदर्शनकारियों का कहना है कि नागरिकता संशोधन से NRC का प्रभाव खत्म हो जाएगा। इससे अवैध शरणार्थियों को नागरिकता मिल जाएगी। प्रदर्शनकारियों को इस बात की भी आशंका है कि कानून बदलने से बांग्लादेश से आए हिंदुओं को नागरिकता मिल जाएगी। ये बांग्लादेशी हिंदू असम के मूल निवासियों के अधिकारों को चुनौती देंगे। इससे उनकी संस्कृति, भाषा, परंपरा, रीति–रिवाजों पर असर पड़ेगा।
भारतीय संविधान के सिक्थ शेड्यूल को ध्यान में रखते हुए उत्तरपूर्वी राज्यों के कुछ इलाकों को इस कानून से अलग रखा गया है। इनमें से तीन असम में, तीन मेघालय में (शिलॉन्ग के एक छोटे हिस्से को छोड़कर तकरीबन पूरा मेघालय), तीन मिज़ोरम में, और एक त्रिपुरा में है। इन सभी इलाकों पर नागरिकता संशोधन कानून लागू नहीं होगा। वहीं अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड को इससे पूरी तरह अलग रखा है। इन राज्यों में इन तीनों राज्यों में ‘इनर लाइन परमिट’ (ILP) की व्यवस्था है। यहां किसी भी वजह से देश के दूसरे राज्यों से आने वाले लोगों को ILP चाहिए होता है। इन राज्यों में किसी को भी बसने की इजाज़त नहीं है। आप यहां कितने दिनों के लिए जा रहे हैं, कहां–कहां जा रहे हैं, ILP लेने के लिए ये सारी चीजें बतानी होती हैं।



अब बात ये कि देश के बाकि इलाकों में ये प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं? प्रदर्शनकारियों का कहना है कि ये कानून संविधान के खिलाफ है क्योंकि इसके तहत धर्म के आधार पर नागरिकता दी जा रही है। सवाल ये भी उठाए जा रहे हैं कि पाकिस्तान के अल्पसंख्यक अहमदिया और बहाई समुदाय को इसमें शामिल क्यों नहीं किया गया है? सवाल ये भी उठ रहे हैं कि जो लोग गैर कानूनी तरीके से देश में घुस आए हैं या जो अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाते, उन्हें कहां रखा जाएगा?
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