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Fact Check
जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पत्नी की बीमारी के दौरान उन्हें अकेला छोड़ दिया था और 10 सालों में एक बार भी उनसे मिलने नहीं गये.
वायरल पोस्ट पूरी तरह झूठ पर आधारित है. कमला नेहरू की मृत्यु के समय जवाहरलाल नेहरू स्विट्ज़रलैंड में उनके साथ मौजूद थे.
भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और उनकी पत्नी कमला नेहरू को लेकर एक कहानी सालों से सोशल मीडिया पोस्टों के ज़रिये परोसी जा रही है. दावा किया गया है कि नेहरू ने टीबी से जूझ रही अपनी पत्नी की देखभाल करने के बजाय उन्हें अकेला छोड़ दिया था.
वायरल पोस्ट में लिखा है कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पत्नी के साथ जो किया, वह इतना भयावह था कि जानकर लोग नेहरू से नफ़रत करने लगेंगे. पोस्ट के मुताबिक:
इस पोस्ट को नेहरू की ‘सच्चाई’ के रूप में शेयर किया जा रहा है.

यह पोस्ट सालों से सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जा रहा है, जिनके आर्काइव लिंक यहां, यहां, यहां और यहां देखे जा सकते हैं.
सबसे पहले, यह सच है कि कमला नेहरू ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) की बीमारी से ग्रसित थीं और उनका निधन 28 फरवरी 1936 को लॉज़ान, स्विट्ज़रलैंड में हुआ. इसके अलावा जो कहानी फैलाई जा रही है, वह ग़लत तथ्यों पर आधारित है. इनमें तारीखों, जगहों और जवाहरलाल नेहरु और कमला नेहरु के रिश्तों से जुड़ी कई बातें भ्रामक तौर पर पेश की गई हैं.
हमने वायरल पोस्ट में किए गए दावों को एक-एक करके सिलसिलेवार ढंग से परखा और उनकी सच्चाई जानने की कोशिश की है. इसके लिए हमने कमला नेहरु, और जवाहरलाल नेहरू से जुड़ी कई किताबों, पत्रों और उनकी आत्मकथा का अध्ययन किया.
कमला नेहरु की टीबी की बीमारी
कमला नेहरू को पहली बार 1925 में टीबी की शिकायत हुई, जिसके बाद उन्हें कई महीनों तक लखनऊ के अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा. उस समय जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस पार्टी के महासचिव थे. इस बीच, जवाहरलाल कानपुर, प्रयागराज (तब इलाहाबाद) और लखनऊ के बीच आते-जाते रहे. नेहरू ने अपनी आत्मकथा ‘जवाहरलाल नेहरु. ऐन ऑटोबायोग्राफी’ में इस बारे में लिखा है.

स्विट्ज़रलैंड में इलाज के दौरान नेहरू 1 साल 9 महीने तक कमला के साथ रहे
नेहरू अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि उन्हें आगे के इलाज के लिए स्विट्जरलैंड जाने की सलाह दी गई थी. मार्च 1926 में नेहरू अपनी पत्नी कमला और बेटी इंदिरा के साथ मुंबई से वेनिस, इटली चले गए. वे वहां लगभग एक साल और नौ महीने रहे. इस बीच, उनकी छोटी बहन, कृष्णा भी उनके साथ रहीं.
इस दौरान, नेहरू ने खुद को राजनीति से दूर रखा और कमला की देखभाल में लगे रहे. जब कमला की सेहत में सुधार हुआ, तो वे इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी गए, जहां उन्होंने कुछ समय साथ बिताया. इसका ज़िक्र खुद नेहरू ने अपनी आत्मकथा में पेज नंबर 166–169 में किया है, जहां उन्होंने कमला की नाज़ुक हालत और उनके हौसले को लेकर खुलकर लिखा है.

फ्रैंक मोराइस की किताब में कमला के प्रति नेहरू के समर्पण का ज़िक्र
वेटरन जर्नलिस्ट और एडिटर फ्रैंक मोराइस ने भी जवाहरलाल नेहरू पर अपनी जीवनी (पेज 106) में दोहराया है कि उस समय नेहरू राजनीति से ज़्यादा निजी जीवन को प्राथमिकता देते थे. डॉ. एमए अंसारी की सलाह पर नेहरू पत्नी कमला के इलाज के लिए अपनी आठ साल की बेटी इंदिरा के साथ स्विट्जरलैंड गए, जहां कमला मोंटाना के एक अस्पताल में भर्ती थीं.
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भारत लौटने के बाद कमला की सेहत में सुधार हुआ, लेकिन 1930 के दशक की शुरुआत में उनकी टीबी की बीमारी फिर से उभर कर आ गई गई.
कमला नेहरु की बायोग्राफी भी वायरल दावों का खंडन करती है
प्रोमिला कल्हण ने कमला नेहरू पर अपनी किताब ‘कमला नेहरू – एन इंटिमेट बायोग्राफी’ के चैप्टर 10 में लिखा है कि 1931 के अंत तक कमला नेहरू की तबीयत फिर से बिगड़ने लगी. नेहरू उन्हें इलाज के लिए मुंबई ले गए, लेकिन कुछ समय बाद इलाहाबाद लौट आए क्योंकि उन्हें डर था कि उन्हें जल्द ही जेल भेज दिया जाएगा. मुंबई वापस जाने पर उन्हें रास्ते में ही रोककर गिरफ़्तार कर लिया गया और नैनी जेल भेज दिया गया.

इसके बाद के चार सालों में नेहरू अधिकतर समय जेल में रहे और केवल छह महीने ही बाहर रह सके. यह समय कमला नेहरू के लिए बीमारी, अकेलेपन और मानसिक तनाव से भरा था. उनकी तबियत लगातार ख़राब बनी रही, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपना काम जारी रखा. वह सभाएं करती थीं, ज़रूरतमंद इलाकों में जाती थीं और यह सब तेज़ बुखार की हालत में भी होता था.
नेहरु ने जेल में रहते हुए कमला की चिंता और देखभाल जारी रखी
उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं था. नेहरू जेल में थे, मोतीलाल नेहरू का निधन हो चुका था और देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल था. नेहरू जेल से गांधीजी को पत्रों में कमला की सेहत को लेकर चिंता जाहिर करते थे. इसके बाद कमला बंबई से कलकत्ता गईं ताकि डॉक्टर बिधान चंद्र रॉय से इलाज करवा सकें.
जेल से रिहाई के दौरान नेहरू और कमला ने अधिकतर समय साथ बिताया
जब नेहरू की दो साल की जेल की सजा पूरी हुई, तो उन्हें पांच महीने की रिहाई मिली. अगस्त 1933 के अंत से 12 फरवरी 1934 तक नेहरू और कमला ने ज़्यादा से ज़्यादा समय साथ में बिताया. इस दौरान वे इलाहाबाद और कलकत्ता में डॉक्टरों से भी सलाह लेते रहे. इस दौरान कमला की तबीयत ठीक लग रही थी और वह नेहरू के साथ हर जगह जाती थीं. जहाँ भी दोनों साथ जाते, लोग उन्हें “आदर्श जोड़ी” कहकर बुलाते थे.

नेहरू और कमला एक-दूसरे पर पूरी तरह निर्भर हो गए थे और उनका आपसी रिश्ता और भी मजबूत हो गया था. लेकिन नेहरू को यह भी अहसास था कि वह ज्यादा दिन तक रिहा नहीं रह पाएंगे.
नेहरू हफ़्ते में दो बार अल्मोड़ा जेल से कमला से मिलने जाते थे
1934 तक, उनकी हालत बिगड़ती चली गई. उस समय नेहरू जेल में थे. यह उनकी सातवीं कैद थी- यह फरवरी 1934 से सितंबर 1935 तक चली. उन्होंने लिखा कि इस दौरान उन्हें सबसे ज्यादा चिंता “कमला के खराब स्वास्थ्य” की थी. इस दौरान उन्हें अलीपुर, देहरादून और अल्मोड़ा जेलों में रखा गया. लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कमला से मिलने की अनुमति दे दी, जिनका नैनीताल के पास भवाली स्थित टीबी सेनेटोरियम में इलाज चल रहा था.
इसका ज़िक्र फ्रैंक मोराइस की किताब के चैप्टर ‘ग्रीफ, ए फिक्स्ड स्टार’ में भी मिलता है.

टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, कमला 10 मार्च से 15 मई, 1935 तक वहां भर्ती रहीं और डॉ. एल.एस. व्हाइट ने उनका इलाज किया. इस दौरान नेहरू को कमला से छह बार मिलने की अनुमति दी गई.
जवाहरलाल नेहरू, कमला की अंतिम सांस तक उनके साथ रहे
अप्रैल 1935 में कमला की हालत बिगड़ गई, इसलिए उन्हें बेहतर इलाज के लिए जर्मनी के बाडेनवीलर अस्पताल भेजा गया. हालांकि, उस समय नेहरू अल्मोड़ा जेल में थे. सितंबर 1935 में समय से पहले रिहा होने के बाद, वे यूरोप गए और लगभग पांच महीने कमला के साथ वहां रहे. दोनों इलाज के लिए बेक्स (स्विट्जरलैंड), बाडेनवीलर (जर्मनी) और फिर लॉज़ेन (स्विट्जरलैंड) के अस्पतालों में जाते रहे. नेहरू, कमला की अंतिम सांस तक उनके साथ रहे.
नेहरु लिखते हैं, “4 सितंबर को मुझे अचानक अल्मोड़ा जेल से छोड़ दिया गया, क्योंकि ख़बर मिली थी कि मेरी पत्नी की हालत गंभीर है. जर्मनी के श्वार्टज़वाल्ड के बाडेनवीलर में उनका इलाज चल रहा था. मुझे बताया गया कि मेरी सज़ा ‘निलंबित’ कर दी गई है, और मुझे साढ़े पांच महीने पहले रिहा कर दिया गया. मैं हवाई जहाज़ से यूरोप के लिए रवाना हुआ.”

उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा, “मैं अपनी पत्नी के साथ था जब 28 फ़रवरी, 1936 को लॉज़ेन में उनकी मौत हो गई.”

फ्रैंक मोराइस अपनी किताब में लिखते हैं कि, “उनके (कमला) अंतिम दिनों में जवाहरलाल उनके बिस्तर के पास बैठकर उन्हें देख रहे थे.”
नेहरू यूरोप से कमला के स्वास्थ्य की जानकारी साझा करते थे
नेहरू की भावनात्मक स्थिति उनके द्वारा लिखे गए पत्रों से भी मिलती है, जो सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ जवाहरलाल नेहरु: सीरीज़ I, वॉल. 7 में प्रकाशित हैं. इन पत्रों में उन्होंने कमला के इलाज, उनके स्वास्थ्य में गिरावट, और इंदिरा के लिए खुद को मजबूत बनाए रखने की कोशिशों का ज़िक्र किया है.
कमला नेहरू की बीमारी के दौरान, बाडेनवीलर में, नेहरू रवींद्रनाथ टैगोर, राजेंद्र प्रसाद सहित कई लोगों को उनके स्वास्थ्य के बारे में पत्र लिखते रहे. वे ज़्यादातर समय उनके साथ ही रहते थे, जब तक कि किसी ज़रूरी काम से बाहर न जाना पड़े.

28 दिसंबर, 1935 को गोशिबेन कैप्टेन को लिखे एक पत्र में नेहरु कहते हैं, “कमला निस्संदेह पहली चिंता है और मैं दिन का अधिकांश समय उसके साथ बिताता हूं, कभी-कभी देर रात का कुछ हिस्सा भी उसके साथ बिताता हूं.”

अब तक के ऐतिहासिक तथ्यों और प्रामाणिक स्रोतों की जांच से पता चलता है कि नेहरू ने अपनी पत्नी की बीमारी के दौरान, चाहे वे जेल में हों या बाहर, उनकी हर संभव देखभाल की. उनके पत्र, आत्मकथा और स्वतंत्र जीवनीकारों द्वारा लिखी गई पुस्तकें इस बात की पुष्टि करती हैं कि नेहरू एक सहयोगी और समर्पित पति थे.
क्या पत्नी कमला की बीमारी के दौरान नेहरू एडविना माउंटबेटन के साथ व्यस्त थे?
यह दावा पूरी तरह ग़लत है. नेहरू की एडविना से पहली मुलाकात 1946 में हुई थी, यानि कमला की मौत के 10 साल बाद. नेहरू की आत्मकथा (1936) या कमला के निधन से पहले के उनके किसी भी पत्र में एडविना का कोई ज़िक्र नहीं है.
लॉर्ड और लेडी माउंटबेटन की पुत्री पामेला माउंटबेटन ने अपनी पुस्तक “इंडिया रिमेम्बर्ड: ए पर्सनल अकाउंट ऑफ द माउंटबेटन्स ड्यूरिंग द ट्रांसफर ऑफ पावर” में लिखा है कि माउंटबेटन परिवार ने 1946 में मलाया (अब मलेशिया) में नेहरू से मुलाकात की थी. एडविना माउंटबेटन की बेटी का दावा है कि जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें पहली बार मलाया में देखा था. एडविना 1947 में अपने पति के साथ भारत आईं थीं.

सुभाष चंद्र बोस ने ₹70,000 इकट्ठा किए और कमला को ‘बुसान, स्विट्ज़रलैंड’ भेजा?
यह दावा भी ग़लत है. पहली बात कि बुसान स्विट्ज़रलैंड में नहीं, बल्कि दक्षिण कोरिया का एक शहर है. नेहरू की आत्मकथा, मोराइस की किताब और प्रोमिला कल्हण की किताब में कमला के इलाज के संदर्भ में सुभास चंद्र बोस का ज़िक्र नहीं है.
जवाहरलाल नेहरू कमला के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हुए और बोस ने अंतिम संस्कार किया
यह दावा भी पूरी तरह से मनगढ़ंत है. जवाहरलाल नेहरू कमला के अंतिम क्षणों में, उनकी आख़िरी सांस तक, उनके साथ मौजूद रहे. उन्होंने अपनी आत्मकथा में अपने दुःख को गहराई से व्यक्त किया है. फ्रैंक मोराइस, प्रोमिला कल्हण की किताब और सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ जवाहरलाल नेहरु: सीरीज़ I, वॉल. 7 में भी इसकी पुष्टि होती है.
हमारी अब तक की जांच से साफ़ हो जाता है कि कमला नेहरू को टीबी की बीमारी थी, लेकिन वायरल पोस्ट में जवाहरलाल नेहरू और उनकी पत्नी के बारे में किए गए अन्य दावे पूरी तरह से झूठ पर आधारित हैं. नेहरू की अपनी किताबें, स्वतंत्र जीवनी लेखक, पत्र और अस्पताल के रिकॉर्ड यह स्पष्ट करते हैं कि नेहरू उनकी देखभाल करने वाले उनके सहयोगी और साथी थे. कई सालों तक बीमारी के दौरान जब वे जेल में थे तब भी, और आखिरी समय में यूरोप में वह अपनी पत्नी कमला के साथ थे.
Sources
Jawaharlal Nehru. An Autobiography (1936)
Frank Moraes. Jawaharlal Nehru (1956)
Selected Works of Jawaharlal Nehru, Series I, Vol.7 (1935-1936)
Promila Kalhan. Kamala Nehru- An Intimate Biography (1973)
The Times Of India
The Telegraph online
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