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क्या मिलावटी दूध की वजह से 2025 तक 87 प्रतिशत भारतीयों को हो जाएगा कैंसर? जानें सच

Originally Published: 10 May 2019

सोशल मीडिया पर एक चौंकाने वाला दावा किया जा रहा है कि भारत में बिक रहे मिलावटी दूध की वजह से 2025 तक 87 प्रतिशत भारतीयों को कैंसर होगा. दावे में इस जानकारी का हवाला विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की कथित चेतावनी को दिया गया है. 
 
 
Courtesy: Facebook/हरोली हलचल
 
दावे के अनुसार, भारत में दूध की खपत 64 करोड़ लीटर है लेकिन उत्पादन 14 करोड़ लीटर है. “इससे समझा जा सकता है कि भारत में कितना मिलावटी दूध बिक रहा है”. दावे में आगे कहा जा रहा है कि, एनिमल वेलफेयर बोर्ड के सदस्य मोहन सिंह आहलूवालिया ने कहा है कि देश में बिकने वाला 68.7 फ़ीसदी दूध और इससे बने प्रोडक्ट मिलावटी है और खाद्य पदार्थों की जांच करने वाली संस्था FSSAI के मानकों पर खरे नहीं उतरते. यह पोस्ट फेसबुक पर काफी वायरल हो रहा है. यह दावा हमें Newschecker की व्हाट्सऐप्प टिपलाइन पर भी मिला।
 
 

Fact Check/Verification

वायरल पोस्ट के बारे में कुछ कीवर्ड्स की मदद से सर्च करने पर हमें भारत सरकार की संस्था प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो (PIB) का एक ट्वीट मिला. 18 अक्टूबर 2022 को पोस्ट किए गए इस ट्वीट में वायरल हो रहे दावे को फर्जी बताया गया है. साथ ही यह स्पष्ट किया गया है कि WHO ने भारत में मिलावटी दूध बिकने को लेकर कोई चेतावनी जारी नहीं की है. WHO अपनी वेबसाइट पर भी इसका खंडन कर चुका है.

पिछले महीने भी PIB ने इस दावे को लेकर एक प्रेस रिलीज जारी की थी. इस प्रेस रिलीज में वायरल पोस्ट में किए जा रहे दावों का खंडन किया गया था. इस रिपोर्ट में पशुपालन विभाग के आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि भारत में 2018-19 के बीच दूध का उत्पादन 51.4 करोड़ किलोग्राम प्रतिदिन था, न कि 14 करोड़ लीटर प्रतिदिन, जैसा कि वायरल दावे में कहा गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, 2021-22 में भारत में दूध का उत्पादन 66.56 करोड़ लीटर प्रतिदिन हो गया था.

इसके साथ ही इस रिपोर्ट में भारत में दूध की खपत को लेकर भी जानकारी दी गई है. बताया गया है कि 2019 में भारत में दूध और इससे बनने वाले उत्पादों की खपत 44.50 करोड़ किलोग्राम प्रतिदिन थी. यानि कि भारत में खपत के हिसाब से पर्याप्त उत्पादन हो रहा है.

PIB की इस प्रेस रिलीज में FSSAI के देशभर में किए गए एक सर्वे के बारे में भी बात की गई. इसके अनुसार, 2018 में FSSAI द्वारा किए गए एक सर्वे में 6432 दूध के सैंपल में से केवल 12 सैंपल मिलावटी निकले थे जो इंसान के उपयोग के लिए सुरक्षित नहीं थे.

इस हिसाब से यह दावा सही नहीं ठहरता कि भारत में उत्पाद होने वाला ज्यादातर दूध मिलावटी है. FSSAI भी इस दावे को लेकर जानकारी स्पष्ट कर चुका है. एजेंसी का भी यही कहना है कि सर्वे में 90% दूध सुरक्षित निकला था और केवल 10 प्रतिशत में मिलावट पाई गई थी.

FSSAI ने अपने इस बयान के जरिए एनिमल वेलफेयर बोर्ड के सदस्य मोहन सिंह आहलूवालिया के दावों को खारिज किया था जिसमें उन्होंने मिलावटी दूध और डब्ल्यूएचओ की चेतावनी के बारे में कहा था. संस्था ने भी बताया था कि डब्ल्यूएचओ की तरफ से ऐसी कोई चेतावनी जारी नहीं की गई है.

हालांकि, FSSAI ने यह जरूर माना था कि कुछ सैंपल्स में वाकई गड़बड़ी पाई गई थी, लेकिन इनकी मात्रा बहुत कम थी. हमें एक रिपोर्ट भी मिली जिसमें तमिलनाडु से लिए गए दूध के सैंपल में कैंसरजनक पदार्थ एफ्लाटॉक्सिन एम1 की मात्रा ज्यादा पाई गई थी.

Conclusion

कुल मिलाकर निष्कर्ष निकलता है कि वायरल पोस्ट में किया जा रहा दावा पूरी तरह से सही नहीं है. पहली बात तो WHO ने भारत में दूध में मिलावट को लेकर ऐसी कोई चेतावनी नहीं दी है. दूसरा कि‌ FSSAI के सर्वे में ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई है कि भारत में 68.7 फ़ीसदी दूध और इससे बने प्रोडक्ट्स मिलावटी है. पोस्ट में बताए गए दूध के उत्पादन और खपत के आंकड़े भी भारत सरकार के आंकड़ों से मेल नहीं खाते.

Result: Partly False

Update/Correction: उपलब्ध नई जानकारी और जांच के आधार पर इस पोस्ट पर प्रकाशित की गई हमारी पुरानी रिपोर्ट गलत पाई गई. 14 फरवरी 2023 को इस खबर की रेटिंग को True से बदलकर Partly False किया गया है. साथ ही, इसमें कुछ और तथ्यों को भी जोड़ा गया है

Our Sources

Press release of PIB and FSSAI
Statement of WHO

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