Newchecker.in is an independent fact-checking initiative of NC Media Networks Pvt. Ltd. We welcome our readers to send us claims to fact check. If you believe a story or statement deserves a fact check, or an error has been made with a published fact check
Contact Us: checkthis@newschecker.in
Fact Check
सोशल मीडिया पर अखबार की एक कटिंग शेयर कर यह दावा किया गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहली बार हिंदी में सुनवाई की जाएगी.
हिंदी भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में हिंदी बोली जाती है. भारत में राज्यों का पुनर्गठन भी भाषायी आधार पर हुआ है. ऐसे में विभिन्न राज्यों में विभिन्न भाषायें बोली जाती हैं. दक्षिण भारतीय राज्यों द्वारा हिंदी इम्पोजिशन को लेकर काफी लंबे से विरोध किया जा रहा है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348(1)(a) के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है. हालांकि, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 348(2) के अंतर्गत यह प्रावधान है कि अनुच्छेद 348(1)(a) के बावजूद किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से हिंदी या किसी अन्य भाषा को उच्च न्यायालय की कार्यवाही के लिए अधिकृत कर सकता है. लेकिन इस खंड का कोई भी हिस्सा उच्च न्यायालय द्वारा किये गए किसी भी निर्णय, डिक्री या आदेश पर लागू नहीं होगा.
इसी क्रम में बाबा रामदेव और पांचजन्य समेत अन्य सोशल मीडिया यूजर्स ने एक अखबार की एक कटिंग शेयर कर यह दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहली बार हिंदी में सुनवाई की जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहली बार हिंदी में सुनवाई के नाम पर शेयर किये जा रहे इस दावे की पड़ताल के लिए हमने ‘सुप्रीम कोर्ट में पहली बार हिंदी में होगी सुनवाई’ कीवर्ड्स को गूगल पर ढूंढा. बता दें कि इस पूरी प्रक्रिया में हमें एक भी ऐसी मीडिया रिपोर्ट नहीं मिली जो कि वायरल दावे की पुष्टि करती हो.
हमारे द्वारा ‘सुप्रीम कोर्ट हिंदी सुनवाई’ कीवर्ड्स को ट्विटर पर ढूंढने पर हमें यह जानकारी मिली कि अखबार की यह कटिंग 2016 में भी शेयर की गई थी.
आनंद नामक ट्विटर यूजर द्वारा यही कटिंग 21 मार्च, 2016 को शेयर की गई थी.
हमने ‘सुप्रीम कोर्ट में पहली बार हिंदी में होगी सुनवाई’ कीवर्ड्स को फेसबुक पर भी ढूंढा. इस प्रक्रिया में हमें यह जानकारी मिली कि 29 जनवरी, 2016 को भारतीय भाषा आंदोलन नामक एक फेसबुक पेज द्वारा अखबार की यही कटिंग शेयर की गई थी.
इसी प्रकार कई अन्य यूजर्स द्वारा अख़बार की यही कटिंग साल 2016 के जनवरी माह में शेयर की गई है.
उपरोक्त पोस्ट्स की सहायता से हमने ‘पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता ब्रह्मदेव प्रसाद’ कीवर्ड्स को गूगल पर ढूंढा. इस प्रक्रिया में हमें इस खबर से संबंधित कई अन्य खबरें 2016 में प्रकाशित मिली.
इस संदर्भ में दैनिक जागरण द्वारा 29 जनवरी, 2016 को प्रकाशित लेख के अनुसार, “सुप्रीम कोर्ट में हिंदी में लिखी याचिका स्वीकार नहीं की जाती, लेकिन बिहार के एक वकील ने इस परंपरा का विरोध किया। उन्होंने अपनी याचिका हिंदी में दायर की तथा अपनी दलीलों से इसे स्वीकार करवा लिया। अब वे वहां हिंदी में ही बहस करेंगे। बिहार के एक वकील के कड़े विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट प्रशासन को हिन्दी में लिखी याचिका स्वीकार करनी ही पड़ी। याचिका पटना हाईकोर्ट के अधिवक्ता ब्रह्मदेव प्रसाद ने दायर की है। वे पटना हाईकोर्ट में हिन्दी में लिखी याचिका ही दायर करते हैं और हिन्दी में ही बहस भी करते हैं।” इस विषय पर नई दुनिया द्वारा ‘सुप्रीम कोर्ट ने हिंदी में लिखी याचिका स्वीकार की’ शीर्षक के साथ प्रकाशित लेख यहां पढ़ा जा सकता है.
इस प्रकार हमारी पड़ताल में यह बात साफ हो जाती है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहली बार हिंदी में सुनवाई के नाम पर शेयर किये जा यह दावा भ्रामक है. असल में अखबार की जिस कटिंग को शेयर कर यह दावा किया जा रहा है वह 2016 से ही सोशल मीडिया पर मौजूद है.
Social Media Posts
किसी संदिग्ध ख़बर की पड़ताल, संशोधन या अन्य सुझावों के लिए हमें WhatsApp करें: 9999499044 या ई-मेल करें: checkthis@newschecker.in