गुरूवार, दिसम्बर 5, 2024
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पश्चिम बंगाल में काली माता की मूर्ति विसर्जन का वीडियो बांग्लादेश का बताकर फर्जी सांप्रदायिक दावे से वायरल

Authors

Since 2011, JP has been a media professional working as a reporter, editor, researcher and mass presenter. His mission to save society from the ill effects of disinformation led him to become a fact-checker. He has an MA in Political Science and Mass Communication.

Claim
यह वीडियो बांग्लादेश में चरमपंथियों द्वारा काली माता का मंदिर तोड़े जाने का है।
Fact
यह दावा फ़र्ज़ी है। यह वीडियो पश्चिम बंगाल के सुल्तानपुर गांव में काली माता की मूर्ति विसर्जन का है।

बांग्लादेश में 25 नवंबर 2024 को ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने चटगांव से हिन्दू पुजारी चिन्मय दास को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था। चिन्मय दास की गिरफ़्तारी के बाद से बांग्लादेश में तनाव बढ़ रहा है। विरोध प्रदर्शन के साथ ही मंदिरों पर हमले की खबरें भी आ रही हैं।

इस बीच सोशल मीडिया पर दो मिनट का एक वीडियो वायरल है। वीडियो में एक भीड़ काली मां की मूर्ति उतारती नजर आ रही है। वीडियो को शेयर करते हुए यह दावा किया जा रहा है कि बांग्लादेश में मुसलमानों द्वारा काली मां का मंदिर तोड़ा जा रहा है। हालंकि, जांच में हमने पाया कि यह दावा फ़र्ज़ी है। असल में यह वीडियो पश्चिम बंगाल के सुल्तानपुर गांव में काली माता की मूर्ति विसर्जन का है।

2 दिसंबर 2024 को किये गए एक्स पोस्ट (आर्काइव) में वायरल वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा गया है, “बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचारों का ये भयावह वीडियो है। मजहबी चरमपंथियों ने कालीबाड़ी मंदिर (काली मां) मंदिर को ध्वस्त कर दिया है। जो काली मां सर्वपूज्य हैं हिंदुओं के लिए, उनकी प्रतिमा को काफिर बताकर तोड़ा जा रहा है। गाजा पर रोने वाली सभी आंखों का पानी मर चुका है ?”

Courtesy: X/@Minakshishriyan

Fact Check/Verification

दावे की पड़ताल के लिए हमने वायरल वीडियो के की-फ्रेम्स को रिवर्स इमेज सर्च किया। इस दौरान हमें 21 अक्टूबर 2024 को दैनिक स्टेट्समैन द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में, वायरल वीडियो में मौजूद मूर्ति से मिलती तस्वीर नजर आयी। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पश्चिम बंगाल के पूर्वी बर्दवान के खंडघोष ब्लॉक में स्थित सुल्तानपुर में काली माता की पूजा पिछले 600 सालों से होती आ रही है। यहाँ पर हर 12 साल में मूर्ति को खंडित करने के बाद उसे विसर्जित कर दिया जाता है। इस दौरान परंपरागत रूप से, ग्रामीण इस पूजा में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और पूरी विसर्जन प्रक्रिया को संभालते हैं।

मिलान करने पर हमने पाया कि मीडिया रिपोर्ट में मौजूद तस्वीर और वायरल वीडियो में दिखाई गई मूर्ति, मंदिर की दीवार और उसपर नजर आ रही आकृतियां एक समान हैं।

Comparison between viral video and image in Dainik Statesman

संबंधित की-वर्ड्स को गूगल सर्च करने पर हमें সুলতানপুর কিরনময়ী পাঠাগার नामक फेसबुक पेज पर भी वायरल क्लिप में दिख रही मूर्ति नजर आती है। 26 नवंबर 2024 को किये गए फेसबुक पोस्ट के कैप्शन में लिखा है, “12 साल की परंपरा, कालीमाता निरंजन। आइए कुछ पल मां प्रतिमा को विदाई देने के लिए निकालें। स्थान: सुल्तानपुर, खंडघोष, पूर्वी बर्दवान। आयोजक: सुल्तानपुर किरणमयी पाठगर और सुल्तानपुर के ग्रामीण।”

न्यूज़चेकर ने सुल्तानपुर काली पूजा के आयोजकों में से एक कार्तिक दत्ता से संपर्क किया। फ़ोन पर हुई बातचीत में उन्होंने हमें बताया कि, “यह हमारे यहाँ की परंपरा है। हमारे गांव के हिंदू लोग हर 12 साल में इस परंपरा का पालन करते हुए विसर्जन के दिन, माँ काली की मूर्ति को इस तरह से खंडित कर विसर्जित करते है। हमने इस बार भी ऐसा ही किया था। लेकिन हमारे विसर्जन का वीडियो सोशल मीडिया पर फ़र्ज़ी सांप्रदायिक कहानी के साथ शेयर किया जा रहा है। हम इस तरह की हरकतों की कड़ी निंदा करते हैं।”

Conclusion

जांच से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि वायरल दावा फ़र्ज़ी है। वायरल हो रहा वीडियो बांग्लादेश का नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल का है।

Result: False

Sources
Report by Dainik Statesman, Dated October 21, 2024
Telephonic conversation with Kartic Dutta, Organiser, Sultanpur Kali Puja

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Since 2011, JP has been a media professional working as a reporter, editor, researcher and mass presenter. His mission to save society from the ill effects of disinformation led him to become a fact-checker. He has an MA in Political Science and Mass Communication.

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