Authors
After completing his post-graduation, Yash worked with some of the most renowned newspapers such as like Lokmat, Dainik Bhaskar & Navbharat for the past 6 years. To make sure that no incorrect news reaches people and to maintain peace and harmony in society, he chose to become a fact-checker.
Claim–
डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर को ब्राह्मण शिक्षक ने अपना उपनाम देने का झूठ ब्राह्मणवादियों द्वारा फैलाया गया है क्योंकि स्कूल की लिस्ट में आंबेडकर नाम का एक भी शिक्षक नहीं है।
आज बहुत से ब्राह्मणवादी बौखलाए हुए हैं और बार बार एक बात पागलों की तरह दोहरा रहे है कि बाबासाहेब को अंबेडकर नाम उनके शिक्षक ने दिया
नीचे दी गई तस्वीर उस स्कूल की है जिसका जिक्र ब्राहमणवादी लोग करते हैं एक भी शिक्षक ऐसा नही था जो अंबेडकर लिखता था 1/2#ब्राह्मणवादीट्विटर pic.twitter.com/SQxJ74CQv9
— The Dalit Voice (@ambedkariteIND) November 3, 2019
खबर के अनुसार भीमराव सकपाल इस तरह हुए आंबेडकर…
देश के संविधान के रचियता डॉ भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के छोटे से गांव महू में हुआ था . उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था. वे अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे. सवाल उठता है कि जब उनके पिता का सरनेम सकपाल था तो उनका सरनेम आंबेडकर कैसे?
भीमराव आंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और निचली जाति मानते थे. अपनी जाति के कारण उन्हें सामाजिक दुराव का सामना करना पड़ा. प्रतिभाशाली होने के बावजूद स्कूल में उनको अस्पृश्यता के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा रहा था. उनके पिता ने स्कूल में उनका उपनाम ‘सकपाल’ के बजाय ‘आंबडवेकर’ लिखवाया. वे कोंकण के अंबाडवे गांव के मूल निवासी थे और उस क्षेत्र में उपनाम गांव के नाम पर रखने का प्रचलन रहा है. इस तरह भीमराव आंबेडकर का नाम अंबाडवे गांव से आंबाडवेकर उपनाम स्कूल में दर्ज किया गया. एक ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर को बाबासाहब से विशेष स्नेह था. इस स्नेह के चलते ही उन्होंने उनके नाम से ‘अंबाडवेकर’ हटाकर अपना उपनाम ‘आंबेडकर’ जोड़ दिया.
इसके अलावा यही जानकारी जागरण जंक्शन में वेबसाइट पर देखने को मिली।
इसके अलावा हमें अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त लेखक तथा विद्वान हरि नरके के ब्लाॅग पर इसकी जानकारी मिली। यह ब्लाॅग मराठी में लिखा गया है। इसमे लिखा गया है कि डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर के पोते डाॅ. प्रकाश आंबेडकर ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया था कि बाबा साहब को आंबेडकर यह उपनाम एक ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर ने ही दिया था।
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After completing his post-graduation, Yash worked with some of the most renowned newspapers such as like Lokmat, Dainik Bhaskar & Navbharat for the past 6 years. To make sure that no incorrect news reaches people and to maintain peace and harmony in society, he chose to become a fact-checker.