शनिवार, नवम्बर 2, 2024
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बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर के उपनाम को लेकर सोशल मीडिया में वायरल हो रहा झूठा दावा

Authors

After completing his post-graduation, Yash worked with some of the most renowned newspapers such as like Lokmat, Dainik Bhaskar & Navbharat for the past 6 years. To make sure that no incorrect news reaches people and to maintain peace and harmony in society, he chose to become a fact-checker.

Claim

डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर को ब्राह्मण शिक्षक ने अपना उपनाम देने का झूठ ब्राह्मणवादियों द्वारा फैलाया गया है क्योंकि स्कूल की लिस्ट में आंबेडकर नाम का एक भी शिक्षक नहीं है। 

 
Verification– 
ट्विटर पर The Dalit voice नामक हैंडल से एक ट्विट किया गया है। इस ट्वीट में दावा किया गया है कि ब्राह्मणवादी लोगों द्वारा बार-बार यह झूठ फैलाया जाता है कि बाबासाहब को उनका आंबेडकर उपनाम एक ब्राह्मण शिक्षक ने दिया था। लेकिन अगर स्कूल की लिस्ट पढ़ी जाए तो उसमें एक भी आंबेडकर उपनाम वाले शिक्षक नजर नहीं आता।  
 
हमनें ट्विट में किए दावे को लेकर और आंबेडकर उपनाम की सच्चाई को लेकर जानने की कोशिश की। ट्विटर पर शेयर की गई शिक्षको की लिस्ट बारीकी से देखी तो इसमें आंबेडकर उपनाम वाला कोई भी शिक्षक मौजूद नहीं था। लेकिन यह लिस्ट मराठी में थी और इसका अनुवाद करने पर पता चला कि यह शिक्षकों की नहीं बल्कि स्कूल के हेडमास्टरों की लिस्ट है। इससे साफ हुआ कि ट्वीट में गलत दावे के साथ लिस्ट शेयर की गई है।
अब हमें यह जानना था कि डाॅ. बाबासाहब को उनका आंबेडकर उपनाम कैसे मिला और उन्होंने सतारा के जिस स्कूल में पढ़ाई की वहां पर आंबेडकर नामक शिक्षक थे या नहीं। इसके लिए हमनें गूगल में कुछ कीवर्ड्स की मदद से खोज शुरू की। इसको लेकर कई खबरों के रिजल्ट्स सामने आए। 
 
 

 
वहीं हमें एनडीटीवी का एक आर्टिकल मिला जिसमें डाॅ. बाबासाहेब को उनका उपनाम कैसे मिला इसकी जानकारी दी गई है। 
 

 

खबर के अनुसार भीमराव सकपाल इस तरह हुए आंबेडकर… 

देश के संविधान के रचियता डॉ भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के छोटे से गांव महू में हुआ था . उनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम भीमाबाई था. वे अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे. सवाल उठता है कि जब उनके पिता का सरनेम सकपाल था तो उनका सरनेम आंबेडकर कैसे?

भीमराव आंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और निचली जाति मानते थे. अपनी जाति के कारण उन्हें सामाजिक दुराव का सामना करना पड़ा. प्रतिभाशाली होने के बावजूद स्कूल में उनको अस्पृश्यता के कारण अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा रहा था. उनके पिता ने स्कूल में उनका उपनाम ‘सकपाल’ के बजाय ‘आंबडवेकर’ लिखवाया. वे कोंकण के अंबाडवे गांव के मूल निवासी थे और उस क्षेत्र में उपनाम गांव के नाम पर रखने का प्रचलन रहा है. इस तरह भीमराव आंबेडकर का नाम अंबाडवे गांव से आंबाडवेकर उपनाम स्कूल में दर्ज किया गया. एक ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर को बाबासाहब से विशेष स्नेह था. इस स्नेह के चलते ही उन्होंने उनके नाम से ‘अंबाडवेकर’ हटाकर अपना उपनाम ‘आंबेडकर’ जोड़ दिया.

इसके अलावा यही जानकारी जागरण जंक्शन में वेबसाइट पर देखने को मिली।

 

इसके अलावा हमें अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त लेखक तथा विद्वान हरि नरके के ब्लाॅग पर इसकी जानकारी मिली। यह ब्लाॅग मराठी में लिखा गया है। इसमे लिखा गया है कि डाॅ. बाबासाहेब आंबेडकर के पोते डाॅ. प्रकाश आंबेडकर ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में बताया था कि बाबा साहब को आंबेडकर यह उपनाम एक ब्राह्मण शिक्षक कृष्णा महादेव आंबेडकर ने ही दिया था। 

 
इससे साफ होता है कि एक ब्राह्मण शिक्षक ने ही डाॅ. बाबा साहब आंबेडकर को अपना उपनाम दिया था। सोशल मीडिया में डाॅ. बाबासाहब आंबेडकर के उपनाम को लेकर भ्रामक जानकारी वायरल की जा रही है। इससे पहले भी इस तरह के भ्रामक दावे सोशल मीडिया में किए गए थे। 
Tools Used 
 
  • Twitter Advanced Search 
  • Google Keywords Search 
 
Result- False
 
(किसी संदिग्ध ख़बर की पड़ताल, संशोधन या अन्य सुझावों के लिए हमें ई-मेल करें: checkthis@newschecker.in)

Authors

After completing his post-graduation, Yash worked with some of the most renowned newspapers such as like Lokmat, Dainik Bhaskar & Navbharat for the past 6 years. To make sure that no incorrect news reaches people and to maintain peace and harmony in society, he chose to become a fact-checker.

Yash Kshirsagar
After completing his post-graduation, Yash worked with some of the most renowned newspapers such as like Lokmat, Dainik Bhaskar & Navbharat for the past 6 years. To make sure that no incorrect news reaches people and to maintain peace and harmony in society, he chose to become a fact-checker.

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