After completing his post-graduation, Yash worked with some of the most renowned newspapers such as like Lokmat, Dainik Bhaskar & Navbharat for the past 6 years. To make sure that no incorrect news reaches people and to maintain peace and harmony in society, he chose to become a fact-checker.
Claim–
देश के कई इलाकों में बाढ़ से आम लोगों को जीना मुश्किल हुआ है। स्मार्ट सिटी का लुत्फ उठाते हुए डिजिटल इंडिया के लोग।
Verification
फेसबुक पर
हल्ला बोल इंडिया नामक पेज से एक फोटो शेयर की गई है। पोस्ट के मुताबिक डूबी सड़क पर कुछ लोग और बच्चे कुर्सी पर बैठकर चाय पी रहे हैं। फेसबुक पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि स्मार्ट सिटी की बड़ी-बड़ी बाते करने वाले नए डिजिटल इंडिया का यह हाल है। स्मार्ट सिटीज वाले डिजिटल इंडिया के लोगों को इस तरह परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
फेसबुक और ट्विटर के अलग-अलग अकाउंट्स पर यह तस्वीर शेयर हो रही थी। इसलिए हमनें इसके बारे में जानने की कोशिश की। गूगल रिवर्स इमेज की मदद से इसकी खोज की तो
यूजर प्रॉब्लम.कॉम नामक वेबसाइट पर एक साल पहले अपलोड की गई यह फोटो मिली जिसे पंजाब के लुधियाना का बताया जा रहा था।
वहीं हमनें इस तस्वीर को यांडेक्स की मदद से ढूंढा तो तीन साल पहले जुलाई 2016 में
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपा एक आर्टिकल मिला। जिसमें दिल्ली में बारिश को लेकर AAP और बीजेपी समर्थकों के बीच तनातनी के बारे में लिखा।
इस फोटो को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र वाराणसी के होने का दावा भी सोशल मीडिया में किया गया था वहीं यह फोटो पाकिस्तान के लाहौर के नाम से भी सोशल मीडिया में वायरल हो रही थी।
पाकिस्तान के लाहौर में बाढ़ की स्थिति दर्शाने वाली यह फोटो
earthquakepredict नामक वेबसाइट पर 2018 में फिर से प्रकाशित हुई थी। वहीं सोशल मीडिया यूजर्स ने भी इसे शेयर किया था।
इससे साफ होता है कि यह फोटो पिछले तीन साल से भारत और पाकिस्तान में अलग-अलग दावों के साथ वायरल हो रही है। इसे इस बार भी भारत में बाढ़ के संदर्भ में शेयर किया गया है। भारत में 2019 के बारिश के मौसम में आई बाढ़ से इसका कोई संबंध नहीं है।
Tools Used
- Facebook Search
- Google Keyword Search
- Google Reverse Image Search
- Yandex
Result- Misleading
After completing his post-graduation, Yash worked with some of the most renowned newspapers such as like Lokmat, Dainik Bhaskar & Navbharat for the past 6 years. To make sure that no incorrect news reaches people and to maintain peace and harmony in society, he chose to become a fact-checker.