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भोपाल गैस त्रासदी को 35 साल पूरे हो गए हैं और यूनियन कार्बाइड कारखाने में पड़े 340 टन के जहरीले कचरे को अभी तक नष्ट नहीं किया गया है। ये कचरा आसपास के इलाकों के लिए आज भी उतना ही बड़ा खतरा बना हुआ है जितना 35 साल पहले था, यहां रहने वाले लोगों को गंभीर बीमारियां हो रही हैं, पीने का पानी भी दूषित है।
क्या है भोपाल गैस कांड?
2-3 दिसंबर 1984 की रात को यूनियन कार्बाइड कंपनी के कारखाने में जहरीली गैस मिथाइल आइसो साइनाइट (MIC) का रिसाव हुआ जिसने कुछ ही घंटे में भोपाल शहर को अपनी चपेट में ले लिया। मध्यप्रदेश की तत्कालीन सरकार ने इस हादसे में 3,787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी। दूसरे अनुमान बताते हैं कि इस केमिकल हादसे में 8000 लोगों की मौत 2 हफ्ते के अंदर हो गई थी और लगभग 8000 लोग गैस रिसने के बाद होने वाली बीमारियों से मारे गये। 2006 में एक शपथ पत्र में सरकार ने माना था कि जहरीली गैस के रिसाव से करीब 5 लाख से अधिक लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए थे।
हादसे के बाद तब के प्रधानमंत्री राजीव गांधी भोपाल गए और वादा किया कि पीड़ितों को मुआवज़ा दिया जाएगा। केंद्र सरकार ने मार्च 1985 में भोपाल गैस लीक एक्ट भी पास किया और तय किया कि भारत सरकार खुद पीड़ितों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ेगी। हालांकि ये मामला इस कदर ढीला पड़ता गया कि अंत में यूनियन कार्बाइड कंपनी महज़ 430 मिलियन डॉलर देकर बरी हो गई और भारत को हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों की गिरफ्तारी का आज भी इंतजार है।
हादसे के लिए कौन था जिम्मेदार?
UCIL कंपनी पर अमेरिकी कंपनी UCC का अधिकार था। त्रासदी के बाद अमेरिकी कंपनी को इसका जिम्मेदार ठहराया गया हालांकि जब कोर्ट में केस चला तो UCC ने कई तरह की थ्योरियां दीं, पहले हादसे के लिए एक कर्मचारी को ही जिम्मेदार ठहराया फिर हादसे के पीछे सिख गिरोह का हाथ बताते हुए कहा कि ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए ऐसा किया गया। कंपनी ने यहां तक कहा कि UCC ने UCIL को MIC अमेरिका से ही ले जाने का सुझाव दिया था लेकिन UCIL ने ही खर्च बचाने के लिए इसे वहीं बनाने का फैसला किया इसलिए हादसे की जिम्मेदारी केवल UCIL की बनती है। हालांकि UCC की कोई भी थ्योरी साबित नहीं हो पाई और उन्हें अंत में मुआवजा देना पड़ा लेकिन ये मुआवज़ा उस रकम से बेहद कम था जो भारत सरकार ने मांगी थी। भारत सरकार ने कंपनी पर 310 करोड़ डॉलर का जुर्माना लगाने की मांग की थी पर कंपनी ने केवल 43 करोड़ डॉलर ही जुर्माने के तौर पर दी।
कब भारत आई थी UCIL?
कैमिकल बनाने वाली कंपनी यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटिड की स्थापना 1934 में की गई। कंपनी में 9 हजार से ज्यादा कर्मचारी रखे गए थे। कंपनी पर 50.9% शेयर के साथ UCC का मालिकाना हक था और 49.1% पर भारतीय निवेशकों और भारत सरकार की हिस्सेदारी थी।
कंपनी ने भोपाल में 1970 में एक पेस्टिसाइड प्लांट बनाया। इसी प्लांट में रिसाव के चलते लाखों लोगों की जिंदगियां तबाह हो गई। हादसे के चार दिन बाद कंपनी के चेयरमैन वॉरेन एंडरसन की गिरफ्तारी हुई लेकिन बड़े नाटकीय अंदाज में वो भारत से भागने में कामयाब रहा।
भोपाल गैस कांड के पीड़ित आज भी बुरे हाल में हैं। तमाम दावों और वादों के 35 साल बाद भी उन्हें इंसाफ का इंतजार है।
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