Authors
Believing in the notion of 'live and let live’, Preeti feels it's important to counter and check misinformation and prevent people from falling for propaganda, hoaxes, and fake information. She holds a Master’s degree in Mass Communication from Guru Jambeshawar University and has been a journalist & producer for 10 years.
Claim
आजादी से पहले छपने वाले एक उर्दू समाचार पत्र का नाम वंदे मातरम था जिसके संपादक समेत सभी कर्मचारी हिंदू थे।
ऐसे नूमाईन्दो को लाहौर से उर्दू भाषा में छपे
” वंदे मातरम” अखबार की दूर्लभ 14 April 1931 की
प्रति की फोटोज से दिमागी हालत दूरस्त हो जाय
लेकिन नहीं सुधरेगें #खिलापत ही इनकी सोच हैं pic.twitter.com/8ixUcpKzGM
— @KashiramRawal11 (@KashiramRawal12) June 22, 2019
Verification
The Daily Bande Mataram नाम के अख़बार की एक कटिंग सोशल मीडिया में शेयर की जा रही है। इसे शेयर करने वालों में बड़े–बड़े पत्रकार तक शामिल हैं। इन सभी का दावा है कि मुसलमानों को वंदे मातरम गाने से परहेज है जबकि आजादी से पहले एक उर्दू अख़बार का नाम ही वंदे मातरम था।
उर्दू–डेली ‘वंदेमातरम्’ संपादक मुस्लिम और कर्मचारी मुसलमान. 1931 से लाहौर से प्रकाशिक उस समय का सर्वाधिक चर्चित अख़बार. जिसकी 5000 से अधिक प्रतियाँ छपती थीं, और पूरे लाहौर में हाथों हाथ लिया जाता था #VandeMataram #ShafiqurRahmanBarq के लिए 14 अप्रैल 1931 की एक प्रति. pic.twitter.com/uu77NkD0EQ
— Aalok Shrivastav (@AalokTweet) June 21, 2019
ये वंदे मातरम् अखबार है जो लाहौर से प्रकाशित होता था !! pic.twitter.com/7A6gXVZqUD
— JayantZ देशभक्त (@JayantZadgaonk2) June 20, 2019
अगर वंदे मातरम वास्तव में इस्लाम के विरुद्ध है तो दैनिक समाचार पत्र ‘वंदे मातरम‘ 14अप्रैल 1931 में लाहौर में कैसे प्रकाशित हो सकता था? ये सब कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा का फैलाया हुआ ढोंग है। @amritabhinder @ShefVaidya @ashokepandit @MrsGandhi @rammadhavbjp @MajorPoonia pic.twitter.com/Y3SXc91zMY
— Prajwal Busta (@PrajwalBusta) June 18, 2019
सबसे पहले अख़बार की प्रति में लिखे नामों की बात करते हैं। सोशल मीडिया में दावा किया जा रहा है कि इस अखबार के संपादक एक मुसलमान थे हमारे उर्दू जानकार सदफ हुसैन ने हमें बताया कि वायरल हो रही प्रति में संपादक का नाम पंडित करमचंद शुक्ल लिखा गया है। शहीद भगत सिंह और राजगुरु के पार्थिव शरीर से जुड़ी इस खबर को लिखने वाले नामों मे कुमारी लीलावती, लाला रामप्रसाद बिस्मिल और लाला फिरोज़चंद शामिल हैं। साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि ये प्रति 1931 संस्करण का 1988 में आया रीप्रिंट है। इससे ये तो साफ हो गया कि इस अखबार के संपादक केवल मुसलमान नहीं थे।
अब हमने इस अखबार के बारे में जानकारी जुटाना शुरू किया। इंटरनेट पर मौजूद कुछ लेखों के मुताबिक The Daily Bande Mataram नाम के इस अख़बार की स्थापना लाला लाजपत राय ने की थी और ये अखबार लाहौर में छपता था। हालांकि किसी पुख्ता सूत्र या सरकारी दस्तावेज़ों में इससे जुड़ी जानकारी नहीं मिल पाई है।
आपको बता दें कि वंदे मातरम नाम से एक अंग्रेजी अख़बार 1906 में शुरू किया गया था जिसकी शुरूआत बिपिन चंद्र पाल ने की थी।
इस वायरल पोस्ट को शेयर करने वालों में शामिल पत्रकार राहुल देव ने अपनी गलती मानते हुए अपना पहला ट्वीट डिलीट कर दिया है
दोस्तों, सुबह मैंने बिना जाँचे १९३१ की इस फोटो के साथ ग़लत जानकारियाँ पोस्ट कर दी थीं कि बंदे मातरम नामक इस अखबार के संपादक, कर्मी मुसलमान थे। नकवी जी ने सही तथ्य दिए जो नीचे लिखें हैं। लाला लाजपत राय इसके संस्थापक थे। पिछली ट्वीट हटा दी है। ग़लती क्षमा करें। उसे रीट्वीट न करें। https://t.co/CBwmzjGY4x
— राहुल देव Rahul Dev (@rahuldev2) June 22, 2019
Tools Used
- Google Image Reverse Search
- Twitter Advanced Search
- TinEye
Result- Misleading
Authors
Believing in the notion of 'live and let live’, Preeti feels it's important to counter and check misinformation and prevent people from falling for propaganda, hoaxes, and fake information. She holds a Master’s degree in Mass Communication from Guru Jambeshawar University and has been a journalist & producer for 10 years.