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क्या बिहार के जहानाबाद में मेढक खाकर पेट भरने को मजबूर हैं बच्चे? लॉकडाउन के बीच वायरल हुआ भ्रामक दावा

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Since 2011, JP has been a media professional working as a reporter, editor, researcher and mass presenter. His mission to save society from the ill effects of disinformation led him to become a fact-checker. He has an MA in Political Science and Mass Communication.

Claim:
देख लीजिए सरकार भूख मिटाने के लिए मेढक खा रहे हैं नौनिहाल। यह है जहानाबाद का नगर परिषद क्षेत्र का वार्ड संख्या 9 रामगढ़ इलाका जहां पेट की आग बुझाने के लिये छोटे-छोटे नौनिहाल गंदे पानी मे उतरकर मेढ़क और पानी मे पलने वाले जीव को खाने को विवश है।
सोशल मीडिया सहित कुछ समाचार माध्यमों द्वारा संचालित वेबसाइट्स पर इन दिनों एक वीडियो क्लिप चर्चा में है। वीडियो में कुछ बच्चे मेढक खाकर अपना पेट भरने की बात करते देखे जा सकते हैं। एक सवाल के जवाब में बच्चा कह रहा है कि लॉक डाउन की वजह से घरों में अनाज की कमी है इसलिए वो अपना पेट भरने के लिए मेढक भूनकर खाने पर विवश हैं। मुफ़लिसी का हवाला देते हुए ये बच्चे जिस तरह की बात कर रहे हैं वास्तव में यह सुनकर रूह कांप जाती है। 
फैक्ट चेक:
21वीं सदी के भारत में क्या कोई अनाज की कमी के चलते मेढक खाकर अपना पेट भरने को मजबूर है? यह सवाल वाकई दिलो-दिमाग को झकझोर देने वाला है। एक ज़माना था जब बिहार सहित कई राज्यों की आदिवासी जातियां चूहे खाकर अपना पेट भरा करती थी। लेकिन आज जब लॉकडाउन के चलते सरकार ने जनता के लिए अपना खजाना खोल रखा है तब कोई भी देशवासी मेढक या जानवर खाकर अपना पेट भरे यह वाकई शर्मनाक है।
वायरल वीडियो में साफ़ देखा जा सकता है कि एक सवाल के जवाब में कुछ बच्चे मेढक खाने की बात स्वीकार करते नजर आ रहे हैं। वीडियो की सत्यता प्रमाणित करने के लिए की गई पड़ताल के दौरान पता चला कि सोशल मीडिया पर इस क्लिप को बड़ी तेजी से शेयर किया गया है। 
कुछ कीवर्ड्स के माध्यम से खबर की असलियत जानने के लिए की गई पड़ताल में पता चला कि कई समाचार माध्यमों ने भी इस घटना को प्रमुखता से प्रकाशित किया है। 
समाचार माध्यमों ने साफ़ लिखा है कि बच्चे मेढक खाकर जीवन बसर करने को मजबूर हैं क्योंकि लॉक डाउन की वजह से उनके घरों में अनाज की किल्लत है।
खबर की तह तक जाने के दौरान कई यूट्यूब के लिंक्स भी मिले जो इस बाद की तस्दीक करते नजर आये कि वाकई जहानाबाद में बच्चे मेढक खाकर जीवन यापन कर रहे हैं। 
देखने पर पता चलता है कि बिहार के स्थानीय समाचार चैनलों ने इस मुद्दे को गंभीरता से उठाया है। वीडियो में साफ़ देखा जा सकता है कि कुछ बच्चे अपने हाथों में मेढक लेकर रिपोर्टर के सवालों का जवाब दे रहे हैं। एक सवाल के जवाब में बच्चे ने बताया कि उसके घर में चावल नहीं है, अनाज नहीं है लिहाजा पेट भरने के लिए मेढकों को पकड़कर उसकी चमड़ी उतारने के बाद आग में भूनकर उससे अपना पेट भरता है। 
वीडियो में जिस तरह से कहा जा रहा और जिस तरह से स्थानीय समाचार माध्यमों ने मुद्दे को उठाया है इससे तो यह कहानी सच साबित होती नजर आ रही थी। लेकिन सच जानने के लिए पड़ताल जारी रखा। इस दौरान बिहार के सूचना और जनसम्पर्क विभाग के ट्विटर हैंडल से वायरल दावे के बारे में किया गया एक ट्वीट प्राप्त हुआ।  
पोस्ट में लिखा गया है कि,मेंढक पकड़कर बच्चों द्वारा खाये जाने की खबर की पड़ताल की जांच में पता चला कि उनके घर में पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री पहले से ही उपलब्ध है। कुछ गैर जिम्मेदार लोगों ने मेंढक खाते हुए बच्चों का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर @DMJehanabad की छवि धूमिल करने की कोशिश की।
ट्विटर पर मौजूद PIB के फैक्ट चेकिंग हैंडल द्वारा भी इस मामले को फेक बताया गया है।
मामले पर ज्यादा जानकारी के लिए जहानाबाद के डीएम से फोन पर बात की। डीएम जहानाबाद ने साफ़ किया कि उनके जिले में इस तरह का कोई भी मामला नहीं है। जिले में पर्याप्त मात्रा में राशन का भंडार है और जरूरतमंदों के घरों तक राशन पहुंचाया भी गया है। 
DM जहानाबाद ने अपने ट्विटर हैंडल द्वारा एक पोस्ट के हवाले से बताया है कि जो बच्चा अनाज के अभाव में मेढक खाने की बात कर रहा था असल में उसके घर में पर्याप्त मात्रा में अनाज मौजूद है। 
जिलाधिकारी के बयान के बाद इतना तो तय हो गया कि जहानाबाद में अनाज की कमी के चलते बच्चों द्वारा मेढक खाये जाने की खबर सच नहीं है। वायरल दावे की खोज के दौरान हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि बिहार के जहानाबाद में बच्चों द्वारा मेढक खाए जाने की घटना में कोई सच्चाई नहीं है।
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Since 2011, JP has been a media professional working as a reporter, editor, researcher and mass presenter. His mission to save society from the ill effects of disinformation led him to become a fact-checker. He has an MA in Political Science and Mass Communication.

JP Tripathi
Since 2011, JP has been a media professional working as a reporter, editor, researcher and mass presenter. His mission to save society from the ill effects of disinformation led him to become a fact-checker. He has an MA in Political Science and Mass Communication.

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