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Fact Check
केंद्र सरकार की ओर से हाल ही में लाई गई सेना भर्ती योजना अग्निपथ एक बार फिर चर्चा में है. सोशल मीडिया पर भारतीय सेना के एक नोटिफिकेशन के जरिए दावा किया गया है कि अग्निवीर योजना में जाति व धर्म प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है और इसी आधार पर अब सेना में भर्ती होगी.
इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि सेना की भर्ती में उम्मीदवारों की जाति पूछी जा रही है. यह दावा करते हुए आम आदमी पार्टी नेता और सांसद संजय सिंह ने ट्वीट किया है कि “मोदी जी आपको अग्निवीर बनाना है या जातिवीर”.
इसको लेकर बीजेपी सांसद वरुण गांधी ने भी अपनी सरकार को घेरा है. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है कि “जब सेना में किसी भी तरह का कोई आरक्षण नहीं है तो अग्निपथ की भर्तियों में जाति प्रमाण पत्र क्यों मांगा जा रहा है. क्या अब हम जाति देखकर राष्ट्रभक्ति तय करेंगे.”
इसके अलावा आरजेडी नेता तेजस्वी यादव सहित कई अन्य लोगों ने आर्मी के इस नोटिफिकेशन को शेयर करते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधा है.
क्या भारतीय सेना की भर्ती में पहली बार पूछी गई जाति और धर्म?
इस दावे पर भारतीय सेना का स्पष्टीकरण आया है. सेना के अधिकारियों ने न्यूज़ एजेंसी ANI को बताया है कि भर्ती प्रक्रिया में कैंडिडेट से जाति व धर्म प्रमाण पत्र पहले से मांगा जाता रहा है. इसको लेकर अग्निवीर भर्ती योजना में कोई नया बदलाव नहीं हुआ है. साथ ही सेना का कहना है कि प्रशिक्षण व तैनाती के दौरान जान गंवाने वाले सैनिकों का अंतिम संस्कार करने के लिए धर्म का पता होना जरूरी है, इसी कारण से धर्म का प्रमाण पत्र मांगा जाता है.
खोजने पर हमें सेना में भर्ती के कुछ पुराने नोटिफिकेशन भी मिले, जिनमें भर्ती प्रक्रिया में जाति व धर्म के प्रमाण पत्र जमा करने के बारे में जानकारी लिखी है. हमें भर्ती से जुड़े जो नोटिफिकेशन मिले हैं वो साल 2015, 2017, 2018 और 2019 के हैं. इन वर्षों में देश के अलग-अलग हिस्सों में सेना की भर्ती हुई थी, जिनमें जाति व धर्म प्रमाण पत्र मांगा गया था.
इसके अलावा, हमें 3 मई से 8 मई 2014 के बीच भोपाल में हुई एक सैनिक भर्ती रैली का भी नोटिफिकेशन मिला, जिसमें जाति प्रमाण पत्र वाली बात का जिक्र है. इस दौरान केंद्र में यूपीए की सरकार थी. इन पुराने आदेशों से यह साबित हो जाता है कि सेना की भर्ती प्रक्रिया में जाति व धर्म प्रमाण पत्र सालों से मांगा जा रहा है. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है, जैसा कि दावा किया गया है.
यहां एक बात और भी गौर करने वाली है कि वायरल हो रहे अग्निवीर के नोटिफिकेशन में यह बात साफ तौर पर लिखी है कि कैंडिडेट को अपने धर्म का प्रमाण पत्र उसी स्थिति में दिखाना होगा जब उसके जाति प्रमाण पत्र में धर्म की जानकारी ना लिखी हो. इस जानकारी को थोड़ा और विस्तार से 2018 के एक सेना भर्ती के आदेश में भी बताया गया है.
2013 में सुप्रीम कोर्ट में भी हो चुकी है बहस
पड़ताल के दौरान हमें 4 दिसंबर 2013 को द हिंदू में प्रकाशित हुई एक खबर मिली. उस समय एक याचिकाकर्ता ने आर्मी की भर्ती प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि सेना में जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर भर्तियां होती हैं. इस पर सेना ने अपने हलफनामे में स्पष्ट किया था कि वह जाति, धर्म और क्षेत्र के आधार पर भर्तियां नहीं करती.
हालांकि, हलफनामे में सेना ने एक ही क्षेत्र से आने वाले लोगों के समूह को एक रेजिमेंट में रखने को सही ठहराया था. सेना का कहना था कि ऐसा प्रशासनिक सुविधा और परिचालन आवश्यकताओं को देखते हुए किया जाता है.
ताजा बवाल पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि यह प्रक्रिया आजादी के पहले से चली आ रही है और इसमें सरकार ने कोई बदलाव नहीं किया है. भारत सरकार के प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो ने भी संजय सिंह के दावे को गलत बताते हुए लिखा है कि प्रमाण पत्र दिखाने का प्रावधान पहले से ही है.
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकलता है कि सेना की भर्ती प्रक्रिया में जाति व धर्म के प्रमाण पत्र का मांगा जाना अग्निपथ योजना से शुरू नहीं हुआ है. ये प्रक्रिया सालों से चली आ रही है.
Our Sources
Indian Army and Government’s Statements
Old notifications of Indian Army Recruitment
Report of The Hindu, published on December 3, 2014
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