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Fact Check
Claim
हल्दीराम मिठाई कंपनी के मालिक मुसलमान हैं.
Fact
नहीं, वायरल दावा फर्जी है.
दिवाली पर मिठाई की धूम के बीच मिठाई और स्नैक्स बनाने वाली कंपनी हल्दीराम को लेकर सोशल मीडिया पर एक दावा वायरल हो रहा है, जिसमें कहा जा रहा है कि इस मिठाई कंपनी के मालिक मुसलमान हैं.
वायरल दावे को एक वीडियो के साथ शेयर किया जा रहा है, जिसमें एक व्यक्ति किसी मिठाई की दुकान में मिठाई से कीड़े निकलने की बात कहता नजर आ रहा है. इस दौरान वीडियो को शेयर करते हुए कहा जा रहा है कि हल्दीराम का कोई भी आइटम खरीदने से पहले कृपया चेक कर लें कि इसका मालिक मुसलमान है.
यह वीडियो फेसबुक पर वायरल दावे वाले कैप्शन के साथ से शेयर किया गया है.

Newschecker ने सबसे पहले हल्दीराम के मालिक के मुस्लिम होने वाले दावे की पड़ताल की. इस दौरान हमें फोर्ब्स इंडिया की वेबसाइट पर 5 दिसंबर 2019 को प्रकाशित रिपोर्ट मिली.

यह रिपोर्ट हल्दीराम के ऊपर किताब लिखने वाली पवित्र कुमार की तरफ से प्रकाशित की गई थी, जिसमें उन्होंने हल्दीराम परिवार के सदस्यों को एक फैमिली ट्री के रूप में दिखाया था. इसमें कोई भी मुस्लिम नहीं था.

रिपोर्ट में यह बताया गया था कि हल्दीराम की शुरुआत गंगा बिशेन अग्रवाल ने बीकानेर में की थी. इसके बाद उन्होंने अपने व्यापार को कोलकाता तक बढ़ाया. इसमें उनके छोटे बेटे रामेश्वर लाल अग्रवाल और पोते शिव किशन अग्रवाल ने सहयोग किया था. हालांकि बाद में कोलकता वाले व्यापार का बंटवारा हो गया और इसके दो हिस्से बेटे सती दास अग्रवाल और रामेश्वर अग्रवाल में बांट दिए गए. वहीं बीकानेर वाला हिस्सा बड़े बेटे मूलचंद अग्रवाल के पास रहा.

इसके बाद हमने अपनी जांच में पवित्र कुमार द्वारा लिखी गई किताब ‘Bhujia Barons: The Untold Story of How Haldiram Built a Rs 5000-crore Empire’ को पढ़ा.

इस किताब को पढ़ने पर हमने पाया कि राजस्थान के बीकानेर में जन्में गंगा बिशेन अग्रवाल उर्फ़ हल्दीराम ने 1918 में शौकिया तौर पर अपने दादाजी की दुकान पर भुजिया बेचने की शुरुआत की थी. मोठ की दाल से बनी कुरकुरी भुजिया जल्दी ही बीकानेर के लोगों के जीभ पर चढ़ गई और बाजार में इसकी मांग काफी बढ़ने लगी. हल्दीराम उस दौरान अपने भाई मोहनलाल और किशन गोपाल के परिवारों के साथ ही बीकानेर के एक घर में रहते थे.

हालांकि बाद में पारिवारिक विवाद की वजह से करीब 1944 के आसपास हल्दीराम अपने परिवार से अलग हो गए और वे अपनी पत्नी, तीन बेटों और एक पोते के साथ अलग मकान में रहने लगे. अलग रहने के बाद हल्दीराम ने शुरू में अपनी पत्नी के साथ मिलकर राजस्थानी मूंग दाल का व्यापार किया और फिर आय बढ़ने के साथ ही उन्होंने भुजिया बेचने का कारोबार शुरू कर दिया.

हल्दीराम की यह भुजिया फिर से लोगों की जीभ को पसंद आने लगी. इसी दौरान 1955 के आसपास हल्दीराम ने भुजिया का काम कोलकाता में भी शुरू किया. दरअसल यह कदम उन्होंने एक शादी समारोह में मिली सफलता के बाद किया, जिसमें परोसी गई उनकी भुजिया लोगों को काफी पसंद आई थी. कोलकाता में भुजिया के कारोबार के लिए हल्दीराम ने अपने छोटे बेटे रामेश्वर लाल और अपने पोते शिव किशन को भेजा था, जो उनके बड़े बेटे मूलचंद के बेटे थे.

जल्दी ही कोलकाता में भी लोगों को हल्दीराम के उत्पाद पसंद आने लगे. बाद में कोलकाता में हल्दीराम के व्यापार का बंटवारा हो गया. हल्दीराम के मंझले बेटे सती दास ने अलग होकर कोलकाता में ही हल्दीराम एंड संस की शुरुआत की. वहीं रामेश्वरलाल के हिस्से आई कंपनी का नाम हल्दीराम भुजियावाला हो गया. जबकि बीकानेर का कारोबार पूरी तरह से हल्दीराम और उनके बड़े बेटे मूलचंद के पास रहा.

इसी दौरान हल्दीराम ने अपने पोते शिव किशन अग्रवाल को 1968 में नागपुर भेजा. शिव किशन अग्रवाल को नागपुर उनकी बहन सरस्वती देवी और उनके पति बंशीलाल के व्यापार में मदद के लिए भेजा गया था. बाद में शिव किशन अग्रवाल ने नागपुर में हल्दीराम का साम्राज्य काफी बढ़ाया और कई आउटलेट एवं रेस्टोरेंट की शुरुआत की. इसके बाद शिव किशन अग्रवाल ने अपने भाई मनोहरलाल के साथ मिलकर अपने व्यापार को दिल्ली में भी बढ़ाया. इसकी शुरुआत चांदनी चौक से की गई.

1984 के सिख नरसंहार में चांदनी चौक स्थित इस दुकान को भी नुकसान पहुंचा. हालांकि बाद में फिर से इसकी नई शुरुआत की गई और जल्द ही यह दिल्ली के लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गई. बाद में शिव किशन के सबसे छोटे भाई मधुसूदन भी दिल्ली वाले व्यापार का हिस्सा बन गए. वहीं बीकानेर वाला व्यापार एक और भाई शिव रतन के पास चला गया और उन्होंने वहां इस ब्रांड को बीकाजी नाम दिया.
बाद में कोलकाता में बंटवारे के बाद रामेश्वरलाल के हिस्से में आए व्यापार का भी बंटवारा उनके बेटों में हो गया. रामेश्वरलाल के चार बेटे थे, प्रभुशंकर अग्रवाल, अशोक अग्रवाल, महेश अग्रवाल और रवि अग्रवाल. रवि अग्रवाल और उनकी पत्नी की मौत 1991 में एक सड़क हादसे में हो गई थी. प्रभुशंकर अग्रवाल ने बंटवारे के बाद हल्दीराम प्रभुजी के नाम से अपने व्यापार को बढ़ाया और बाद में इसका नाम पूरी तरह से प्रभुजी हो गया. वहीं महेश अग्रवाल ने प्रतीक फूड्स की शुरुआत की. इसके अलावा अशोक अग्रवाल ने कोलकाता के अलावा दिल्ली में भी अपने आउटलेट्स की शुरुआत की थी. जिसका उनके चचेरे भाईयों मनोहर लाल और मधुसूदन ने जमकर विरोध किया और इस मामले को कोर्ट में भी लेकर गए. बाद में अशोक अग्रवाल के स्वामित्व वाली हल्दीराम को नाम बदलकर रामेश्वर्स भी रखने पड़े थे.

हमारी जांच में मिले साक्ष्यों से यह तो साफ़ हो गया कि हल्दीराम कंपनी के मालिक मुस्लिम नहीं हैं. हालांकि, इस दौरान पोस्ट के साथ शेयर किए गए वीडियो के बारे में हम पता नहीं लगा पाए कि यह वीडियो कहां का है.
हमने अपनी जांच में पाया कि करीब 1945 के दशक में शुरू हुई हल्दीराम कंपनी बंटवारे के बाद अलग-अलग शहरों में अलग-अलग नामों जैसे हल्दीराम नागपुर, हल्दीराम, हल्दीराम भुजियावाला, प्रभुजी, प्रतीक फूड्स के नाम से चल रही है, लेकिन किसी के भी मालिक मुस्लिम नहीं हैं.
Our Sources
Article Published by Forbes on 5th Dec 2019
Book by Pavitra Kumar “Bhujia Barons: The Untold Story of How Haldiram Built a Rs 5000-crore Empire”
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