Authors
Believing in the notion of 'live and let live’, Preeti feels it's important to counter and check misinformation and prevent people from falling for propaganda, hoaxes, and fake information. She holds a Master’s degree in Mass Communication from Guru Jambeshawar University and has been a journalist & producer for 10 years.
बीते दिनों अभिनेत्री कंगना रनौत के दफ्तर में BMC (बृहन्मुंबई म्युनिसिपल कारपोरेशन) द्वारा तोड़-फोड़ की गई। मामला हाईकोर्ट पहुंचा और तोड़-फोड़ पर रोक लग गई। कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने इसे राजनीतिक पूर्वाग्रह से प्रभावित कार्रवाई बताया तो वहीं कुछ लोगों ने इस पर खुशियां भी मनाई. इसी बीच बीजेपी समर्थकों द्वारा प्रियंका गांधी के हिमाचल प्रदेश के छरबरा में स्थित मकान को अवैध बताया गया और उसे तोड़ने की मांग की गई। इसके बाद कई अन्य यूजर्स भी इस मुद्दे पर ट्वीट करने लगे और देखते ही देखते #DemolishPriyankaHimachalHome ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा.
ऐसे ही तमाम अन्य दावे यहां देखे जा सकते हैं.
Fact Check/Verification
बात वायरल दावे की करें तो यह पहली बार नहीं है जब इस मामले को लेकर विवाद हुआ है। दरअसल, प्रियंका गांधी का यह मकान शुरू से ही सुर्ख़ियों में रहा है। सुर्ख़ियों के पीछे की वजह की बात करें तो वजह सिर्फ एक है और वो है हिमाचल प्रदेश में किसी बाहरी व्यक्ति द्वारा भूमि ना खरीद पाने का कानून। बता दें कि प्रियंका गांधी को राज्य सरकार द्वारा 2007 में करीब 4 बीघा और 5 बिस्वा जमीन 46.79 लाख रुपये के मूल्य पर दी गई थी। इसके लिए राज्य सरकार को ‘Tenancy and Land Reform Act, 1972’ का सहारा लेना पड़ा था। इस बारे में विस्तृत जानकारी के लिए 25 अगस्त 2007 को प्रकाशित The Tribune का यह लेख पढ़ा जा सकता है.
अब बात करते हैं जमीन या मकान की वैधता की. दरअसल ‘Section 118 of the H.P. Tenancy & Land Reforms Act, 1972’ गैर हिमाचली लोगों को राज्य में भूभाग खरीदने और उस पर मकान निर्माण की इजाजत देता है. प्रियंका गांधी को भूभाग देने के लिए हिमाचल की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने इसी कानून का सहारा लिया था. इस कानून की बात करें तो इसमें कई प्रावधान हैं जिनके अनुपालन के पश्चात ही सरकार किसी बाहरी व्यक्ति को जमीन दे सकती है। मसलन अगर किसी म्युनिसिपल एरिया में प्रदत्त भूभाग रहने के लिए (गैर कृषि योग्य भूमि) इस्तेमाल किया जा रहा है तो ऐसे में भूभाग का क्षेत्रफल 500 स्क्वायर मीटर से अधिक है तो उसका स्थानान्तरण नहीं हो सकता और अगर भूभाग व्यावसायिक उद्देश्य से लिया जा रहा है और वह 300 स्क्वायर मीटर से अधिक है तो उसका स्थानानतरण नहीं हो सकता. हालांकि इस कानून में इन तमाम प्रावधानों के अपवाद भी शामिल हैं जो कि इस कानून को बेहद पेंचीदा और जटिल बनाते हैं. पूरा क़ानून यहां देखा जा सकता है.
जब हमने इस बारे में अधिक पड़ताल की तो हमें कई मीडिया रिपोर्ट्स मिलें जिनमे इस मामले से जुड़े विवादों का जिक्र है. ज्ञात हो कि ये मीडिया रिपोर्ट अलग-अलग वर्षों में अलग-अलग परिस्थितियों में प्रकाशित किये गए हैं. हमें एक ऐसी ही मीडिया रिपोर्ट मिली जो कि 2013 में The Hindu में प्रकाशित हुई थी. इस रिपोर्ट में यह बताया गया कि प्रियंका गांधी के अलावा वरिष्ठ वकील और अरविन्द केजरीवाल के तत्कालीन सहयोगी प्रशांत भूषण समेत कुल 811 लोगों को इस प्रावधान के तहत जमीन दी गई थी. इसी रिपोर्ट में आगे यह बताया गया है कि प्रश्नकाल के दौरान यह मामला हिमाचल प्रदेश विधानसभा में उठाया गया था. जिसके जवाब में तत्कालीन राजस्व मंत्री ने कहा था कि भूभाग केवल प्रियंका वाड्रा को ही नहीं बल्कि केजरीवाल के सहयोगी प्रशांत भूषण के माध्यम से ‘कुमुद भूषण एजुकेशन सोसाइटी’, 52 अन्य शैक्षिक समितियों, तीन प्राइवेट विश्वविद्यालयों और कई कंपनियों को Section 118 of the HP Land Tenancy and Reforms Act 1972 के तहत दी गई थी.
इसके बाद हमें 2013 में ही इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक लेख मिला जिसमें उपरोक्त घटनाक्रम को विस्तार से बताया गया है. इस लेख में यह बताया गया है कि राज्य की तत्कालीन भाजपा सरकार जिसके मुखिया प्रेम कुमार धूमल थे उनके नेतृत्व में 2007 में बनी सरकार ने तीन वर्षों के अपने कार्यकाल में कुल 881 गैर हिमाचलियों को राज्य में जमीन मुहैया कराई जिनमें से प्रियंका वाड्रा गांधी और प्रशांत भूषण मुख्य हैं. इस लेख की मानें तो प्रियंका वाड्रा इस लिस्ट में सबसे टॉप पर आती हैं क्योंकि उन्हें 922 स्क्वायर मीटर जमीन खरीदने की अनुमति दी गई थी.
इसके बाद हमें 2008 में Economic Times में प्रकाशित एक लेख मिला जिसमे इस जमीन खरीद से जुड़े कुछ अन्य तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है. साथ ही साथ इस लेख में गांधी परिवार की राज्य से विशेष जुड़ाव को लेकर भी तमाम तरह के दावे किये गए हैं.
इसके बाद हमें इस मामले में एक RTI कार्यकर्ता द्वारा जाँच की मांग करने संबंधी कुछ रिपोर्ट्स भी प्राप्त हुई जिनमें आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों की विस्तृत व्याख्या की गई है.
हमें इसी RTI पर लिखा गया The Wire का एक लेख प्राप्त हुआ जिसमे आरटीआई में पूछे गए सवालों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है. बता दें इस लेख में शिमला के DG द्वारा आरटीआई के जवाब में लिखा पत्र भी संलग्न है. इस लेख में बताया गया है कि आरटीआई डालने वाले ने 4 प्रमुख सवाल पूछे थे जो कि इस प्रकार हैं:
1) प्रियंका वाड्रा ने तीन बार जमीन खरीदी जो कि कानूनन अवैध है, उन्हें इसकी इजाजत कैसे दी गई?
2) जमीन की खरीद एक बोर्ड द्वारा ही स्वीकृत की जा सकती है लेकिन इस खरीद में किसी बोर्ड का गठन नहीं हुआ, क्यों?
3) 2 वर्ष में निर्माण कार्य पूर्ण नहीं हुआ जो कि कानूनन अवैध है, क्यों?
4) अगर निर्धारित समयावधि में निर्माण कार्य शुरू नहीं होता है तो सक्षम अधिकारियों द्वारा खरीददार को नोटिस भेजा जाता है, ऐसे में प्रियंका वाड्रा को नोटिस क्यों नहीं भेजा गया?
इन्हीं सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायलय के वरिष्ठ अधिवक्ता विश्व मोहन शर्मा से बातचीत की. विश्व मोहन शर्मा ने शुरू के 2 सवालों के जवाब में हमें यह बताया कि इस तरह का कोई भी प्रावधान इस कानून में नहीं है. तीसरे यानि 2 वर्ष के भीतर निर्माण कार्य शुरू किये जाने के सवाल के संबंध में शर्मा हमें यह बताते हैं कि कानून के अनुसार ख़रीदे गए भूभाग को 2 वर्ष के भीतर ‘Put To Use’ करना पड़ता है यानि उपयोग में लाना होता है जो कि प्रियंका वाड्रा के निर्माण कार्य शुरू करवा देने से पूर्ण हो जाता है. शर्मा ने हमें यह बताया कि 2 वर्ष के भीतर निर्माण कार्य पूरा होना है ऐसा कोई प्रावधान इस कानून में नहीं है ऐसे में चौथा सवाल यानि नोटिस भेजे जाने की बात ऐसे ही अस्तित्व ने नहीं आती. शर्मा हमें आगे बताते हैं कि इस खरीद को लेकर कुछ संदेहास्पद बिंदु प्रकाश में आये थे जैसे अत्यंत कम समय सीमा में प्रियंका वाड्रा को अनुमति दिया जाना और राज्य में भूमिहीन नागरिक होने के बावजूद भी किसी गैर हिमाचली को जमीन देना. शर्मा ने हमें यह भी बताया कि ये सारे सवाल केवल नैतिक आधार पर पूछे जा सकते हैं क्योंकि इन सवालों में कोई कानूनी आधार नहीं है. इस प्रकार विश्व मोहन शर्मा ने हमें यह बताया कि इस खरीद पर नैतिक रूप से तो प्रश्नचिन्ह लगाए जा सकते हैं लेकिन कानूनी तौर पर इस पूरी खरीद में किसी नियम की अवहेलना नहीं की गई है.
Conclusion
इस प्रकार हम इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि प्रियंका गांधी वाड्रा द्वारा खरीदी गई जमीनें कानूनन अवैध नहीं हैं। लेकिन जिस तरह से नियमों में ढील देकर और सामान्य से कम समय सीमा में खरीद की अनुमति देकर राज्य के भूमिहीन नागरिकों की अनदेखी की गई वह राज्य के नागरिकों द्वारा तत्कालीन कांग्रेस और भाजपा सरकारों से सवाल का पूरा मौका जरूर देती है. उपलब्ध साक्ष्यों और कानूनी जानकारों के भाजपा समर्थकों द्वारा प्रियंका गांधी वाड्रा के घर को अवैध बताये जाने का दावा हमारी पड़ताल में भ्रामक साबित होता है.
Result: Misleading
Our Sources
Sources: The Tribune: https://www.tribuneindia.com/news/archive/features/who-can-cannot-buy-land-in-himachal-819058
Archived: https://archive.vn/Ti5of
Indian Express: https://archive.indianexpress.com/news/priyanka-gandhi-prashant-bhushan-allowed-to-buy-land-in-hp/1099593/
The Wire: https://thewire.in/politics/priyanka-land-deal
Government Document: https://himachal.nic.in/WriteReadData/l892s/13_l892s/3618435Section118-Compendium.pdf
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Believing in the notion of 'live and let live’, Preeti feels it's important to counter and check misinformation and prevent people from falling for propaganda, hoaxes, and fake information. She holds a Master’s degree in Mass Communication from Guru Jambeshawar University and has been a journalist & producer for 10 years.