सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर कर दावा किया जा रहा है कि ब्राह्मणों के खिलाफ अपशब्द कहने पर अब एट्रोसिटी एक्ट लागू होगा। दावा किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया है।
फेसबुक पर कई यूजर्स ने इस पोस्ट को शेयर किया है, जिसमें दावा किया गया है कि ब्राह्मणों के खिलाफ अपशब्द कहने पर अब एट्रोसिटी एक्ट लागू के तहत कार्रवाई होगी।

ट्विटर पर भी यह दावा वायरल है।

दरअसल, बीते महीने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि अप्रैल 2018 में ग्वालियर-चंबल के हिस्से में एट्रोसिटी एक्ट को लेकर हुई हिंसा में जिन लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुए, उसे वापस लिया जाएगा। आजतक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले एट्रोसिटी एक्ट को लेकर ग्वालियर-चंबल के कई हिस्सों में हिंसा हुई थी। इसमें 6 लोगों की मौत हो गई थी, जिसके बाद दो पक्षों के कई लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था।
इसी बीच सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर कर दावा किया गया कि ब्राह्मणों के खिलाफ अपशब्द कहने पर अब एट्रोसिटी एक्ट लागू होगा।
Fact Check/Verification
गूगल पर कुछ कीवर्ड की मदद से सर्च करने पर हमें वायरल दावे से जुड़ी कोई मीडिया रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई। हमने कोर्ट और कानून से जुड़े फैसलों की रिपोर्टिंग करने वाली वेबसाइट ‘Live Law‘ और ‘BarandBench‘ पर भी सर्च किया, लेकिन हमें कोई मीडिया रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई।
इसके बाद हमने सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर भी खोजा। हमें ऐसा कोई जजमेंट नहीं मिला जैसा कि वायरल पोस्ट में दावा किया गया है। अगर सर्वोच्च न्यायलय (Supreme Court) ने ऐसा कोई फैसला दिया होता तो उसके बारे में वेबसाइट पर जरूर उल्लेख किया गया होता।
इससे ये स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसा कोई फैसला नहीं दिया गया है कि ब्राह्मणों के खिलाफ अपशब्द कहने पर अब लागू होगी एट्रोसिटी एक्ट लागू होगा।
Newschecker ने इस दावे की सत्यता जानने के लिए सुप्रीम कोर्ट के वकील अनुराग ओझा से संपर्क किया। उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसा कोई फैसला नहीं लिया गया है कि ब्राह्मणों के खिलाफ अपशब्द कहने पर अब एट्रोसिटी एक्ट लागू होगी। ये दावा पूरी तरह गलत है। संविधान के अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध), अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का उन्मूलन) में वर्णन किए गए संवैधानिक उपायों को ध्यान में रखते हुए यह एक्ट लाया गया है। समाज में फैली अस्पृश्यता को रोके बिना बराबरी नहीं ला सकेंगे।”
क्या है एट्रोसिटी एक्ट ?
देश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सुरक्षा के उद्देश्य से 1989 में एक कानून बनाया गया था, जिसे अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 के नाम से जाना जाता है।
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस अधिनियम का उद्देश्य समाज में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचारों को रोकना और समाज में फैले भेदभाव को खत्म करना था।
ये जरूर है कि वर्षों से समय-समय पर एट्रोसिटी एक्ट में बदलाव करने की मांग कुछ लोगों द्वारा उठाई गई है, जिसे यहां और यहां पढ़ा जा सकता है। इसके अलावा, एससी-एसटी के खिलाफ विगत कुछ वर्षों के दौरान प्रदर्शन भी हो चुके हैं।
बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च 2018 को सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में सुनवाई करते हुए अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निरोधक) अधिनियम, 1989 दुरुपयोग मामले में फैसला दिया था, जिसमें बिना जांच के तत्काल एफआईआर और गिरफ्तारी के प्रावधान पर रोक लगा दी गई थी। लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि शिकायत मिलने के बाद डीएसपी स्तर पर मामले की जांच की जाएगी ताकि शुरुआती जांच में ये पता चल सके कि आरोप प्रेरित नहीं है। इस फैसले के बाद देशभर में जगह-जगह प्रदर्शन हुए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में कई सामाजिक संगठनों द्वारा 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद का आह्वान किया गया था।
इस फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की गई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 1 अक्टूबर 2019 को सुनवाई करते हुए अपने फैसले को पलट दिया। लाइव हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने केन्द्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर यह फैसला सुनाया था।
Conclusion
इस तरह हमारी पड़ताल में स्पष्ट है कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कोई फैसला नहीं दिया है, जिसमें कहा गया हो कि ब्राह्मणों के खिलाफ अपशब्द कहने पर अब एट्रोसिटी एक्ट लागू होगा।
Result: False
Our Sources
Supreme Court’s Website
Telephonic Conversation with Supreme Court Advocate Anurag Ojha
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