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Fact Check
सोशल मीडिया पर एक फेसबुक पोस्ट वायरल हो रहा है। पोस्ट में एक पत्र शेयर हो रहा है। पत्र में देखा जा सकता है कि यह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा इंग्लैंड के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली को लिखा गया है। इस दौरान पत्र में सुभाष चंद्र बोस की जानकारी देते हुए यह बताया गया है कि सुभाष चंद्र बोस ब्रिटिश के एक जंगी अपराधी हैं जिन्हें रूस में घुसने की इजाज़त मिल गयी है।

फेसबुक पोस्ट का आर्काइव लिंक यहाँ देखें।
पंडित नेहरू द्वारा कथित रूप से लिखे इस वायरल पत्र को देखने पर हमें इसके फर्जी होने की आशंका हुई। जिसके बाद हमने अपनी पड़ताल आरम्भ की। पड़ताल के दौरान हमने पत्र को बारीकी से देखा तो पाया कि पत्र में कई गलतियाँ हैं। जैसे पत्र में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री ‘क्लेमेंट एटली’ को क्लेमेंट एटट्ल बताया है।
इसके बाद हमने पत्र को जिस दिनांक को लिखा गया था, उस पर भी गौर किया। गौरतलब है कि पत्र को 27 दिसंबर 1945 में लिखा गया था, जबकिआधिकारिक दस्तावेजों के मुताबिक सुभाष चंद्र बोस की ताइवान में 18 अगस्त 1945 को मृत्यु हो चुकी थी।

वायरल पत्र की सत्यता जानने के लिए हमने और बारीकी से खोजा। इस दौरान हमें netanetajipapers.com नाम की वेबसाइट पर कुछ पुराने दस्तावेजों के कुछ आर्काइव लिंक मिले। इस दौरान हमें वेबसाइट पर प्रदीप बोस, जो सुभाष चंद्र बोस के भतीजे थे उनके द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपाई को लिखा गया एक पत्र मिला।

उन्होंने एक लेख भी लिखा है जिसका शीर्षक ‘A note on the mysteries of Netaji’s “Life and Death” by Pradip Bose” इसी लेख में नेहरू द्वारा कथित रूप से लिखे गए पत्र का भी जिक्र है।
वायरल पत्र नेहरू जी द्वारा नहीं लिखा गया है। बल्कि यह उस साक्ष्य का हिस्सा है जो नेहरू के स्टेनोग्राफर श्यामलाल जैन ने जी डी खोसला आयोग के समक्ष पेश किये थे। बताते चलें कि जी डी खोसला एक आयोग है जिसे सुभाष चंद्र बोस के रहस्यमय तरह से गायब होने की जांच करने के लिए साल 1970 में स्थापित किया गया था।

उपरोक्त मिले इस पत्र का जिक्र प्रदीप बोस द्वारा लिखी पुस्तक में भी किया गया है। जहां श्यामलाल जैन स्टेनोग्राफर द्वारा जी डी खोसला को दिए गए बयान का उल्लेख दिया गया है। प्रदीप बोस की किताब के मुताबिक जैन ने बयान दिया था कि नेहरू ने 26 या 27 दिसंबर, 1945 को कांग्रेस नेता आसफ अली के दिल्ली आवास में ये पत्र लिखवाया था। बता दें कि श्यामलाल जैन द्वारा दी गयी गवाही को जी डी खोसला आयोग ने स्वीकार नहीं किया था।
इसके बाद हमने प्रदीप बोस की पुस्तक में श्यामलाल जैन द्वारा दी गयी गवाही की पुष्टि के लिए पड़ताल शुरू की। पड़ताल के दौरान हमने इस बात की जानकारी प्राप्त करने के लिए खोजा कि 25 से 29 सितंबर को नेहरू और आसफ़ अली कहाँ थे।
इस दौरान हमें 28 दिसंबर 1945 को प्रकाशित इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट मिली। जहाँ यह बताया गया है कि 25 दिसंबर को नेहरू बिहार के पटना में थे।

खोज के दौरान हमें साल 1903 से 1947 के बीच जवाहरलाल नेहरू द्वारा लिखे गए दस्तावेजों का आर्काइव लिंक मिला।

इस दौरान यहाँ जानकारी दी गयी है 26 और 27 दिसंबर साल 1945 को पत्र लिखे है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक जवाहरलाल नेहरू 26 और 27 दिसंबर साल 1945 को इलाहाबाद में थे और वहीं से पत्र लिखे थे।
इस दौरान हमें इंडियन एक्सप्रेस की एक और रिपोर्ट मिली। रिपोर्ट के अनुसार आसफ़ अली सरदार वल्लभ भाई पटेल से बॉम्बे में 25 दिसंबर को मिले थे।

इसी के साथ हमें एक रिपोर्ट और मिली। जहां यह जानकारी दी गयी है कि 25 से 27 दिसंबर तक आसफ़ बॉम्बे में ठहरे हुए थे इसके बाद 27 दिसंबर को वे दिल्ली के लिए रवाना हुए थे।

उक्त पत्र साल 2018 में भी इसी दावे के साथ वायरल था। जिसकी ऑल्ट न्यूज़ ने पड़ताल की थी। वायरल दावे पर ऑल्ट न्यूज़ की पड़ताल पढ़ने के लिए दिए गए लिंक को पढ़ें।
खोज के दौरान मिले तथ्यों से पता चला कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा कथित रूप से लिखा गया वायरल पत्र गलत है। पंडित नेहरू ने सुभाष चंद्र बोस को लेकर इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली को ऐसा कोई मूल पत्र नहीं लिखा। असल में वायरल पत्र सिर्फ उस एक साक्ष्य का हिस्सा है जो नेहरू के स्टेनोग्राफर (श्यामलाल जैन) ने जी डी खोसला आयोग के समक्ष दिए थे। जिसे बाद में आयोग ने स्वीकार नहीं किया था।
https://news.google.com/newspapers?id=67I-AAAAIBAJ&sjid=SEwMAAAAIBAJ&pg=4349%2C6983931
https://eresources.nlb.gov.sg/infopedia/articles/SIP_745_2005-01-22.html
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