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यूपी में आज से विधनासभा चुनाव की शुरुआत हो चुकी है। इस दौरान बीते कुछ महीनों से विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा यूपी में व्यापक चुनाव प्रचार देखने को मिला और सोशल मीडिया पर भी कई भ्रामक दावे शेयर किए गए। लेकिन इन सब चुनावी उठापटक के बीच क्या विकास के असल मुद्दे गुम हो गए? Newschecker ने ये जानने की कोशिश की है कि विकास के सूचकांक में यूपी में पिछले पांच सालों के बीजेपी शासन के दौरान क्या हुआ?
सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) और प्रति व्यक्ति जीएसडीपी:
जीएसडीपी किसी एक वर्ष में गणना की गई राज्य की सीमाओं के भीतर उत्पादित विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों (कृषि, उद्योग और सेवाओं) द्वारा जोड़े गए मूल्य का कुल योग है। यह किसी राज्य की अर्थव्यवस्था के लिए आर्थिक विकास के उपायों में से एक है।
योगी आदित्यनाथ ने जब 2017 में यूपी की सत्ता संभाली थी, उस वक्त राज्य का जीएसडीपी 10,57,74,712 था। यह आंकड़ा अगले दो वर्षों में बढ़कर क्रमश: 2018 में 11,23,98,196 और 2019 में 11,66,81,747 तक जा पहुंचा। लेकिन साल 2020-2021 में जब पूरी दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना की चपेट में था, उस वक्त यूपी के जीएसडीपी का आंकड़ा गिरकर 10,92,62,381 हो गया।
आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, यूपी का प्रति व्यक्ति जीएसडीपी 2020-21 में भारत के औसत प्रति व्यक्ति आय 86,659 का आधा था। जब योगी आदित्यनाथ ने 2017 में यूपी की सत्ता संभाली उस वक्त राज्य की प्रति व्यक्ति जीएसडीपी 41,832 थी और ये साल 2018 में बढ़कर 43,670 और 2019 में 44,618 हो गई। लेकिन साल 2020-21 में ये आंकड़ा घटकर 41,023 हो गया।
रोजगार:
योगी सरकार में अगर रोजगार की बात करें तो मिला-जुला परिणाम देखने को मिला। सीएमआई के आंकड़ों के अनुसार, यद्यपि यूपी में बेरोजगारी की दर 2016 में 16% के स्तर से नीचे आ गई, लेकिन सच्चाई ये है कि योगी सरकार में बेरोजगारों की संख्या बढ़ी है। इस दौरान लेबर फोर्स (श्रम बल) की भागीदारी भी कम हो गई है।
पिछले कुछ वर्षों में श्रम भागीदारी दर में भी गिरावट देखने को मिली। जनवरी-अप्रैल 2017 में श्रम भागीदारी की दर 38.4% से घटकर अबतक के अपने सबसे निचले स्तर 34.45% पर है।
राज्य में लिंग के अनुसार श्रम भागीदारी दर को देखें तो, पुरुषों की श्रम भागीदारी दर जनवरी-अप्रैल 2017 में 67.96% से गिरकर सितंबर-दिसंबर 2021 में 62.90% हो गई है। इस बीच, महिलाओं की श्रम भागीदारी दर 3.89% से गिरकर 2.53% हो गई है।
श्रम बल भागीदारी दर मौजूदा समय में या रोजगार की चाह रखने वाली अर्थव्यवस्था में, 16-64 आयु वर्ग में कामकाजी आबादी के वर्ग की होती है। जब किसी वक्त में कम रोजगार होते हैं, तो लोग रोजगार पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उतने प्रोत्साहित नहीं होते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप श्रम भागीदारी दर में कमी आती है।
कानून-व्यवस्था
एनसीआरबी की आंकड़ों के अनुसार, यूपी में योगी आदित्यनाथ के बतौर मुख्यमंत्री पदभार संभालने के बाद से आईपीसी के तहत दर्ज अपराधों में लगातार वृद्धि दर्ज हुई है। यह प्रवृत्ति पिछली सरकार के कार्यकाल में भी देखी गई थी। यूपी में साल 2017 में कुल 3,10,084 आईपीसी के तहत अपराध दर्ज किए गए, वहीं, साल 2018 और 2019 के दौरान इसमें लगातार वृद्धि दर्ज की गई जो क्रमश: 3,42,355 और 3,53,131 हो गई। वहीं, साल 2020 में यानी वैश्विक महामारी के दौरान ये मामले बढ़कर 3,55,110 हो गए।
अपराधों की प्रकृति पर बारीक से नज़र डालने पर एक अलग प्रवृत्ति का पता चलता है। हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों में गिरावट दर्ज की गई है। मसलन, यूपी में साल 2017 में 4,324 हत्या के मामले दर्ज किए जबकि साल 2020 में यह संख्या गिरकर 3,779 हो गई।
रेप के आंकड़ों में भी कुछ इसी तरह का ट्रेंड देखने को मिला जो कि साल 2017 में 4245 था और 2021 में घटकर 2769 हो गया।
महिलाओं पर होने वाले अत्याचार और दहेज हत्या जैसे अन्य आपराधिक मामलों में एक अलग प्रवृत्ति दिखाई दी है। साल 2017 में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार के मामलों की संख्या 12,607 थी, यह साल 2019 में 11,988 मामलों के साथ लगभग उसी रेंज में रही। साल 2020 में जिस वक्त पूरे वर्ष लोग महामारी से जूझ रहे थे और चरणबद्ध लॉकडाउन लगाया गया था, उस दौरान ये आंकड़ा गिरकर 9,864 हो गया।
दहेज हत्या और घरेलू हिंसा में अधिक अंतर नहीं दर्ज किया गया। साल 2017 में 2,524 दहेज हत्याएं दर्ज की गईं। वहीं, साल 2020 में दहेज से होने वाली मौतों के 2,274 मामले सामने आए।
साल 2017 में घरेलू हिंसा के 12,653 मामलों के साथ इसमें वृद्धि देखी गई, जबकि साल 2020 में घरेलू हिंसा के 14,454 मामले सामने आए।
जब बात कानून प्रवर्तन बुनियादी ढांचे की आती है, तो इन आंकड़ों में सुधार देखने को मिला है। लेकिन यह भी जितना सुधार होना चाहिए था उतना नहीं हो पाया। पुलिस अनुसंधान ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, प्रति लाख जनसंख्या पर पुलिस की संख्या 90.4 थी, जबकि स्वीकृत आंकड़ा 187.8 था। इन आंकड़ों में अगले चार वर्षों में धीरे-धीरे बढ़ोत्तरी दर्ज की गई। साल 2020 में प्रति लाख जनसंख्या पर पुलिस की संख्या 133.85 है जो कि 183.19 के स्वीकृत आंकड़े से अभी भी नीचे है।
स्वास्थ्य
यूपी देश के उन राज्यों में से एक है, जहां स्वास्थ्य के लिए आवंटन बजट में लगातार वृद्धि देखी गई है। साल 2017-2018 के बजट में स्वास्थ्य के मामले में 17,181 करोड़ रुपये आवंटित हुए थे, जबकि साल 2021-2022 के बजट में इस क्षेत्र में 32,000 करोड़ रुपये से अधिक बजट आवंटित हुआ। कुल बजट के संबंध में इस क्षेत्र में आवंटित की गई राशि के प्रतिशत को देखें तो यह साल 2020 तक 5.5% के आस-पास था, और साल 2021-22 में बढ़कर 6.3% हो गया है।
राज्य में अगर स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे की बात करें तो राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल के आंकड़ों के मुताबिक, यूपी में जब योगी आदित्यनाथ ने पदभार संभाला था तब पीएचसी (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र) की संख्या साल 2017 में 3,497 थी, जो कि घटकर साल 2021 में 3,473 हो गई। लेकिन राज्य के अस्पताल में बिस्तरों की संख्या साल 2017 में 59,945 से बढ़कर साल 2021 में 66,700 हो गई है।
जहां तक डॉक्टरों की बात है, आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, राज्य के पीएचसी में 1,288 डॉक्टरों की कमी थी, जो कि साल 2020 में घटकर 121 रिक्तियों पर आ गई है। स्त्री रोग विशेषज्ञ, सर्जन और बाल रोग विशेषज्ञों की संख्या साल 2015 में 2,608 से मामूली रूप से घटकर साल 2020 में 2,028 हो गई।
अन्य स्वास्थ्य सूचकांक में केवल मामूली सुधार देखने को मिला है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, साल 2015-2016 में, यूपी में महिलाओं में 52.40% एनीमिया के मामले दर्ज किए गए, जिसमें साल 2019 -2021 में 50.40% के साथ कमी दर्ज की गई है।
वहीं, शिशु मृत्यु दर साल 2015-2016 में 63.5 से गिरकर 2019-2021 में 50.4 हो गई है। बच्चों के बीच पोषक दर साल 2015-2016 में 6.00% से बढ़कर साल 2019 -2021 में 7.30% हो गया है।
पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कद बढ़ने की दर में भी सुधार हुआ है। आंकड़ों की मानें तो साल 2015-2016 में ये 46% था जो कि साल 2019-2021 में गिरकर 39.70 % हो गया है।
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