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Fact Check
सोशल मीडिया पर अखबार की एक कटिंग शेयर कर यह दावा किया गया कि सरकारी फरमान के बाद बिहार में शिक्षकों द्वारा अब खुले में शौच करने वालों की निगरानी की जाएगी.
भारत में खुले में शौच रोकना एक बड़ी चुनौती है. विशेषकर गावों में यह समस्या सामान्य जीवन के एक स्वाभाविक प्रक्रिया के रूप में विद्यमान है. पिछले कुछ सालों में केंद्र तथा राज्य सरकारों द्वारा इस समस्या हल करने के कई प्रयास किये गए. सरकारों द्वारा शौचालय के लिए अनुदान दिए जाने के बावजूद भी कई घरों में या तो शौचालय ही नही है या अगर शौचालय है भी तो प्रयोग में नही है. तो वहीं कई ऐसे घर भी हैं, जहां शौचालय भी है लेकिन प्रयोग में होने के बावजूद भी घर के कई सदस्य खुले में शौच करने जाते हैं.
हिंदी भाषी राज्यों विशेषकर यूपी, बिहार, झारखंड तथा छत्तीसगढ़ में यह समस्या काफी विकट हो जाती है. ऐसे में इन राज्यों में स्थापित सरकारें जागरूकता अभियान, अनुदान समेत अन्य योजनाओं के माध्यम से इसका हल तलाशने का प्रयास करती हैं.
इसी क्रम में, सोशल मीडिया पर अखबार की एक कटिंग शेयर कर यह दावा किया गया कि सरकारी फरमान के बाद बिहार में शिक्षकों द्वारा अब खुले में शौच करने वालों की निगरानी की जाएगी.

सरकारी फरमान के बाद बिहार में शिक्षकों द्वारा अब खुले में शौच करने वालों की निगरानी के नाम पर शेयर की जा रही अखबार की इस कटिंग की पड़ताल के लिए, हमने ‘खुले में शौच करने वालों की निगरानी करेंगे शिक्षक’ कीवर्ड्स को गूगल पर ढूंढा. इस प्रक्रिया में हमें उक्त दावे से संबंधित कई खबरें प्राप्त हुईं.

उपरोक्त गूगल सर्च से प्राप्त परिणामों में हमें नवभारत टाइम्स द्वारा 21 नवंबर, 2017 को प्रकाशित एक रिपोर्ट प्राप्त हुई. नवभारत टाइम्स की इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2017 में बिहार के प्रखंड शिक्षा अधिकारी (ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर) के एक फरमान के अनुसार, शिक्षकों को पढ़ाई के साथ-साथ खुले में शौच करने वालों पर निगरानी करने का भी आदेश दिया गया था.

इसके अतिरिक्त हमें अमर उजाला, गाँव कनेक्शन, Outlook हिंदी तथा OneIndia हिंदी समेत अन्य रिपोर्ट्स प्राप्त हुईं, जिनमे बिहार में शिक्षकों द्वारा अब खुले में शौच करने वालों की निगरानी कराये जाने के इस फैसले को 2017 का बताया गया है. बता दें कि उपरोक्त मीडिया रिपोर्ट्स साल 2017 में 21 से 22 नवंबर के बीच प्रकाशित की गई हैं.
दैनिक जागरण द्वारा 23 नवंबर, 2017 को प्रकाशित एक रिपोर्ट में बिहार में शिक्षकों द्वारा अब खुले में शौच करने वालों की निगरानी कराये जाने के इस प्रकरण को लेकर, सूबे के तत्कालीन शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा का बयान प्रकाशित किया गया है. दैनिक जागरण की खबर के अनुसार, ‘शिक्षकों को लोटे की निगरानी सौंपने के आदेश पर हुए विवाद के बाद शिक्षा विभाग ने घुटने टेक दिए हैं। गुरुवार को विभाग ने शौच की निगरानी शिक्षकों से कराने का आदेश वापस ले लिया। इधर शिक्षा मंत्री कृष्णनंदन प्रसाद वर्मा ने कहा, इस मामले पर अफवाह उड़ाई गई थी। मंत्री वर्मा ने कहा सेल्फी लेने या शौच की निगरानी करने का कोई आदेश शिक्षकों को नहीं दिया गया था। हालांकि, दो दिन पूर्व ही उन्होंने कहा था कि शिक्षक बौद्धिक कार्य करते हैं। स्वच्छता का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर चल रहा है ऐसे में शिक्षकों को लोटे की निगरानी का काम भी करना चाहिए, परन्तु इससे पढ़ाई नहीं बाधित होनी चाहिए।’

दैनिक जागरण द्वारा प्रकाशित उपरोक्त रिपोर्ट को पढ़ने के बाद हमने ‘बिहार सरकार ने खुले में शौच करने वालों की शिक्षकों से निगरानी का फरमान वापस लिया’ कीवर्ड्स को गूगल पर ढूंढा. इस प्रक्रिया में हमें आजतक, नई दुनिया तथा News24 द्वारा साल 2017 के नवंबर माह में प्रकाशित रिपोर्ट्स प्राप्त हुईं. बता दें कि इन रिपोर्ट्स के अनुसार, शिक्षक संगठनों द्वारा उक्त फैसले के विरोध के बाद सरकार ने फैसले को वापस ले लिया था.
इस तरह हमारी पड़ताल में यह बात साफ हो जाती है कि वायरल दावा भ्रामक है. असल में सरकारी फरमान के बाद बिहार में शिक्षकों द्वारा अब खुले में शौच करने वालों की निगरानी के नाम पर शेयर की जा रही यह खबर साल 2017 की है, जिसे शिक्षक संगठनों द्वारा विरोध के बाद वापस ले लिया गया था.
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