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Gujarat Election 2022: पिछले पांच सालों में जनता से किए वादों पर कितना खरी उतरी गुजरात की बीजेपी सरकार?

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An enthusiastic journalist, researcher and fact-checker, Shubham believes in maintaining the sanctity of facts and wants to create awareness about misinformation and its perils. Shubham has studied Mathematics at the Banaras Hindu University and holds a diploma in Hindi Journalism from the Indian Institute of Mass Communication. He has worked in The Print, UNI and Inshorts before joining Newschecker.

गुजरात में विधानसभा चुनाव का बिगुल बजने के साथ ही राजनीतिक दलों ने प्रदेश के विकास को लेकर तमाम वादे किए हैं। करीब 27 साल से गुजरात की सत्ता संभाल रही बीजेपी ने बीते शनिवार को अपना चुनावी घोषणापत्र जारी किया है, जिसमें प्रदेश के विकास के कई दावे किए गए हैं। बीजेपी ने इसी तरह अपने पिछले घोषणापत्र में भी कई लोकलुभावन वादे किए थे। इन वादों में किसानों की आय दोगुनी करना, सभी घरों में शौचालय की व्यवस्था सहित डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों का खात्मा करना करना भी शामिल था। 

बीजेपी ने दिसंबर 2017 में अपना चुनावी घोषणापत्र जारी किया था। इसमें अगले पांच सालों में राज्य को बेहतरी की दिशा में ले जाने के लिए कई वादे किए गए थे। Newschecker ने सार्वजनिक रूप से उपल्बध नवीनतम आंकड़ों की सहायता से इनमें से पांच वादों की पड़ताल की है। 

दावा-1

सभी ग्रामीण घरों में टॉयलेट की सुविधा:

सच्चाई:

पांच साल पहले बीजेपी ने गुजरात के गावों के सर्वांगीण विकास के लिए सभी ग्रामीण घरोंं में शौचालय मुहैया कराने का वादा किया था। अगर राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NHFS-5) के आंकड़ों की मानें तो गुजरात में लगभग 82 प्रतिशत घरों में शौचालय की सुविधा उपलब्ध है। ये सुविधा गांवों में 71% है जबकि शहरी क्षेत्रों में 97% घरों में शौचालय बने हुए हैं। 

दावा-2

2022 तक गुजरात को मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों से मुक्त करना:

सच्चाई:

बीजेपी ने दिसंबर 2017 में पांच सालों में गुजरात को मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों से मुक्त करने का वादा किया था। गुजरात राज्य में अभी भी इन बीमारियों से मुक्ति नहीं मिली है। राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण केंद्र के आंकड़ों पर नज़र डालें तो साल 2022 के अगस्त तक मलेरिया के लगभग 2,500 और डेंगू के 4,800 मामले सामने आए हैं। जबकि अक्टूबर 2022 तक चिकनगुनिया के 882 मामलों की पुष्टि की जा चुकी है।   

मलेरिया

गुजरात में साल 2018 में मलेरिया के 22 हजार मामले सामने आए थे और इस दौरान 2 लोगों की मौत हुई थी। साल 2019 में ये आंकड़ा घटकर 13 हजार हो गया और इस बीमारी से एक व्यक्ति की मौत भी दर्ज की गई थी। साल 2020 में मलेरिया के मामलों में और गिरावट दर्ज की गई। गौरतलब है कि 2020 में पूरी दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के चपेट में थी। इस साल गुजरात में मलेरिया के करीब 4,700 मामले सामने आए थे और एक व्यक्ति की मौत हुई थी। वहीं, 2021 में इन आंकड़ों में मामूली वृद्धि देखी गई और 4,900 के करीब मामले सामने आए थे। आंकड़ों के अनुसार, गुजरात में पिछले दो साल से मलेरिया से किसी भी व्यक्ति की मौत नहीं हुई है। 

डेंगू:

गुजरात में साल 2018 में डेंगू के करीब 7,500 मामले दर्ज किये गए थे। इसके चलते पांच लोगों की मौत भी हो गई थी। साल 2019 में इस बीमारी का प्रकोप बढ़ गया और संक्रमित मामलों की संख्या बढ़कर 18 हजार के पार चली गई। डेंगू से साल 2019 में 17 लोगों की मौत हुई थी। 

साल 2020 में डेंगू के मामलों में बेतहाशा गिरावट दर्ज की गई। इस साल 1,500 मामले सामने आए थे और दो लोगों की मौत हुई थी। इसके अगले दो साल यानी 2021 और 2022 के अगस्त माह में क्रमश: 10,983 और 4,811 मामले दर्ज किए गए हैं। इस दौरान 2021 में 14 लोगों की मौत हुई, जबकि 2022 में अगस्त तक 2 लोगो की डेंगू से मौत हो गई थी।  

चिकनगुनिया:

गुजरात में चिकनगुनिया बीमारी से पिछले पांच सालों में कोई मौत नहीं हुई है। राज्य में साल 2018 और 2019  में क्रमश: 1290 और 669 मामले सामने आए थे। वहीं, 2020 में चिकनगुनिया के मामलों की संख्या बढ़कर 1,061 हो गई थी। जबकि साल 2021 में इन मामलों में वृद्धि देखी गई और इस वर्ष 4,000 से अधिक लोग चिकनगुनिया से संक्रमित हुए थे। आंकड़ों के मुताबिक, अगस्त 2022 तक राज्य में कुल 16 हजार के करीब चिकनगुनिया के संदिग्ध मामले सामने आए हैं, जिनमें से 852 मामलों में इस बीमारी की पुष्टि हो चुकी है। 

दावा-3

पांच सालों में किसानों की आय दुगनी:

सच्चाई:

देश के अन्नदाताओं की आय बढ़ाने को लेकर केंद्र और लगभग सभी राज्य सरकारें तमाम वादे करती हैं। गुजरात सरकार ने भी पिछले विधानसभा चुनावों से पहले राज्य के किसानोंं की आय दोगुनी करने की प्रतिबद्धता जताई थी, लेकिन पांच साल बीत जाने के बाद भी गुजरात के किसानोंं की आय दोगुनी नहीं हुई है।

राष्ट्रीय कृषि सांख्यिकी के 2012-13 के आंकड़ों के अनुसार, गुजरात में किसानों की आय लगभग 8 हजार रुपयेे प्रति महीने थी। 2019 में जारी हुई इसी रिपोर्ट में गुजरात में प्रति किसान मासिक आय लगभग साढ़े चार हजार रुपये बढ़कर 12 हजार 631 रुपए हो गई। 

वहीं, आरबीआई द्वारा जारी किए गए नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, गुजरात में खेतिहर मजदूरों की आय 260 रुपये प्रतिदिन है। साल 2017-18 में इन मजदूरों की दैनिक आय लगभग 182 रुपये थी। वहीं, 2018-19 में 199 रुपये था वही 2019-20 में ये 9 रुपये बढ़कर 208 रुपये हो गया। जबकि 2020-21 में इसमें पांच रुपये की वृद्धि हुई और खेतिहर मजदूरों की दैनिक आय 213 रुपये हो गई ।

दावा-4

गुजरात की जीडीपी में हर साल 10 प्रतिशत की वृद्धि:

सच्चाई:

गुजरात में 2012 से लेकर 2017 तक हर साल जीडीपी ग्रोथ 10 प्रतिशत के ऊपर थी। बीजेपी ने 2017 के चुनाव में अपना घोषणा पत्र जारी करते हुए वादा किया था कि अगले पांच साल भी ये वृद्धि दर जारी रहेगी। गुजरात विधानसभा में मार्च 2022 में पेश हुई CAG की रिपोर्ट की मानें तो वित्तीय वर्ष 2017-18 और 2018-19 में राज्य की जीडीपी क्रमश: 13.87 प्रतिशत और 13.08 प्रतिशत थी। ये वित्तीय वर्ष यानी कोरोना के साल में 2019-20 में घटकर 10 प्रतिशत से नीचे जाकर 9.75 प्रतिशत हो गई। वहीं, 2020-21 में राज्य की अर्थव्यवस्था ने पिछले साल की तुलना में 0.57 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की।

इसके अलावा, CAG की रिपोर्ट के अनुसार, गुजरात सरकार पर 2016-17 में लगभग 2.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, अगले 5 साल यानी 2020-21 में यह बढ़कर 3.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। इस तरह प्रदेश पर कर्ज का बोझ पांच सालों में 19 प्रतिशत से बढ़कर 21 प्रतिशत हो गया है।

दावा-5

गुजरात के सूरत और वड़ोदरा में मेट्रो सेवा शुरू करने का कार्य:

सच्चाई:

गुजरात में पांच साल पहले बीजेपी ने सूरत और वड़ोदरा में मेट्रो सेवाओं को लेकर प्रतिबद्धता दिखाने का वादा किया था। वर्तमान समय में इन दोनों शहरों में अभी मेट्रो सेवाओं का संचालन शुरू नहीं हो सका है। सूरत मेट्रो की आधारशिला जनवरी 2021 में रखी गई थी। 43 किलोमीटर की इस मेट्रो लाइन का निर्माण कार्य अगले साल तक पूरा होने की उम्मीद है। वहीं, वड़ोदरा में फिलहाल मेट्रो लाइन का निर्माण कार्य भी शुरु नहीं हुआ है।

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An enthusiastic journalist, researcher and fact-checker, Shubham believes in maintaining the sanctity of facts and wants to create awareness about misinformation and its perils. Shubham has studied Mathematics at the Banaras Hindu University and holds a diploma in Hindi Journalism from the Indian Institute of Mass Communication. He has worked in The Print, UNI and Inshorts before joining Newschecker.

Shubham Singh
An enthusiastic journalist, researcher and fact-checker, Shubham believes in maintaining the sanctity of facts and wants to create awareness about misinformation and its perils. Shubham has studied Mathematics at the Banaras Hindu University and holds a diploma in Hindi Journalism from the Indian Institute of Mass Communication. He has worked in The Print, UNI and Inshorts before joining Newschecker.

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