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गिरती विकास दर, बेरोजगारी, बढ़ता क्राइम: कुछ ऐसा रहा पंजाब का रिपोर्ट कार्ड

पंजाब में 20 फ़रवरी को विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग होनी है. इससे पहले पंजाब में राजनीतिक दलों के नेता एक-दूसरे पर तीखे हमले बोल रहे हैं. जहां पीएम मोदी ने कांग्रेस को किसान विरोधी नीतियों को लेकर घेरा है, वहीं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बीजेपी पर “फर्जी राष्ट्रवाद” दिखाने का आरोप लगाया है. प्रियंका गांधी भी लगातार केंद्र पर हमलावर हैं. अगर बात करें पंजाब सीएम चरणजीत सिंह चन्नी की तो वह भी आम आदमी पार्टी पर कई तंज कस चुके हैं.

पंजाब में 117 विधानसभा सीटों के लिए महासंग्राम देखने को मिल रहा है, जिसमें कई राजनीतिक दल अपनी जीत का दावा ठोक चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि बीते पांच सालों में कांग्रेस शासित पंजाब का रिपोर्ट कार्ड कैसा रहा? इसको लेकर ‘न्यूज़चेकर‘ ने कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं जैसे आर्थिक वृद्धि, रोज़गार, स्वास्थ्य सुविधाएं और कानून व्यवस्था पर राज्य का विश्लेषण किया. यह विश्लेषण कुछ इस तरह से है.

पंजाब में धीमी हुई आर्थिक वृद्धि की रफ़्तार

रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया के अनुसार, 2017-18 में पंजाब का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 6.4 प्रतिशत की दर से बढ़ा था. हालांकि, इसके बाद के सालों में यह वृद्धि कम होती चली गई. 2018-19 में यह वृद्धि 5.9 प्रतिशत की दर से आगे बढ़ी, जबकि 2019-20 में यह और गिरकर 4.1 प्रतिशत पर आ गई. इसके बाद कोरोना महामारी के वर्ष 2020-2021 में पंजाब की आर्थिक वृद्धि 6.6 प्रतिशत की दर से गिर गई और नेगेटिव में चली गई.

पंजाब की प्रति व्यक्ति जीडीपी देश के औसत से तो ऊपर रही, लेकिन इसमें भी पिछले सालों के मुकाबले गिरावट देखने को मिली. 2016-17 की तुलना में 2017-18 में पंजाब की प्रति व्यक्ति जीडीपी 4.7 प्रतिशत की दर से बढ़ी. लेकिन 2018-2019 में ये सिर्फ 4.4 प्रतिशत की दर से बढ़ पाई. अगले वित्त वर्ष में इसमें और गिरावट देखने को मिली और ये दर 2.9 प्रतिशत पर आ गई. 2020-21 में यह दर शून्य से भी नीचे गिर गई और -6.6 प्रतिशत पर आ गई.

पंजाब का रिपोर्ट कार्ड

पंजाब: कांग्रेस काल में बेरोज़गारी लगभग दो गुना बढ़ी

पंजाब के बेरोज़गारी के आंकड़े संतोषजनक नहीं दिखते हैं. हमने जनवरी-अप्रैल 2017 में बेरोजगारों के आंकड़ों की तुलाना नवीनतम जारी आंकड़े (सितंबर-दिसंबर 2021) से की. सामने आया कि पंजाब में इस दौरान बेरोजगारों की संख्या 4.84 लाख से बढ़कर 8.21 लाख हो गई है, जो लगभग दो गुना है.

पंजाब का रिपोर्ट कार्ड

इसी अवधि में पंजाब की बेरोज़गारी दर भी बढ़ी है. जहां जनवरी-अप्रैल 2017 में राज्य की बेरोज़गारी दर 4.05 प्रतिशत थी, वहीं सितंबर-दिसंबर 2021 में यह छलांग मारकर 7.85 प्रतिशत पर आ गई. हालांकि, ये दोनों आंकड़े संबंधित तिमाहियों में रही देश की औसत बेरोज़गारी दर के काफी करीब हैं (जनवरी- अप्रैल 2017 में 4.68 प्रतिशत और सितंबर-दिसंबर 2021 में 7.31 प्रतिशत). इससे यह भी पता चलता है कि इन तिमाहियों में पंजाब की बेरोज़गारी दर के आंकड़े देश के आंकड़ों के लगभग समान रहे हैं.

पंजाब में श्रम भागीदारी दर (एलपीआर) में भी गिरावट देखने को मिली है. हालांकि, यहां अन्य चुनावी राज्यों की तुलना में कम गिरावट हुई है. जनवरी-अप्रैल 2017 के दौरान पंजाब में एलपीआर 44.12 दर्ज हुई थी. सितंबर-दिसंबर 2021 में यह गिरकर 39.99 पर आ गई. बेरोज़गारी दर की तरह, पंजाब की श्रम भागीदारी दर भी इन दोनों तिमाहियों में राष्ट्रीय औसत के अनुरूप है

पंजाब का रिपोर्ट कार्ड

अपराध में हुई बढ़ोतरी

पंजाब में अपराधों की संख्या में भी उछाल सामने आया है. 2017 में राज्य में कुल 39,288 संज्ञेय अपराध दर्ज हुए थे जो 2020 में बढ़कर 49,870 पर पहुंच गए.

गौर करने पर ऐसा ही रुझान बलात्कार और हत्या जैसे गंभीर अपराधों में भी नजर आता है. पंजाब में 2017 से 2020 के दौरान हत्या के मामले 659 से बढ़कर 757 पर पहुंच गए थे.

पंजाब में 2017 से 2019 के बीच बलात्कार के मामले लगभग दोगुना हो गए. 2017 में राज्य में 530 रेप की घटनाएं सामने आईं थीं, वहीं 2019 में 1002. 2020 में महामारी के दौरान यह संख्या गिरकर 502 पर आ गई. 2017 से 2019 के बीच महिलाओं पर यौन उत्पीड़न के मामले बलात्कार की श्रेणी के समान ही दर्ज किए गए. पिछले आंकड़ों की तरह 2020 में भारी गिरावट देखने को मिली.

महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराध जैसे घरेलू उत्पीड़न और दहेज हत्या के मामलों में भी राज्य में बढ़ोतरी पाई गई. पंजाब में 2017 में घरेलू उत्पीड़न के 1,199 मामले दर्ज हुए थे. 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 1,595 हो गया. 2020 में यह संख्या 1,271 पर आ गई.

पंजाब में 2017 में दहेज की वजह से हुईं हत्याओं के 68 मामले आए थे. 2019 में इसमें ज्यादा बदलाव नहीं देखा गया और 69 मामले दर्ज किए गए. इसके बाद 2020 में 63 दहेज हत्या के केस सामने आए.

यहां बात करें कानून प्रवर्तन के ढांचे की तो पंजाब में वास्तविक और स्वीकृत पुलिस प्रति लाख जनसंख्या (पीपीआर) के बीच का अंतर बढ़ा हुआ सामने आया. 2017 में जहां स्वीकृत पीपीआर 299.6 था, वहीं वास्तविक पीपीआर 275 था. 2020 में स्वीकृत पीपीआर 321 था जबकि स्वीकृत पीपीआर 286.5 दर्ज हुआ.

हालांकि, इस दौरान ‌जनसंख्या प्रति पुलिसकर्मी (पीपीपी) में बदलाव लगभग समान रहा. 2017 में स्वीकृत पीपीपी 333.82 था और वास्तविकता में यह आंकड़ा 363.63 रहा. 2020 में इन आंकड़ों में लगभग ना के बराबर बदलाव देखने को मिला. इस साल स्वीकृत पीपीपी 311. 53 रहा, जबकि वास्तविक पीपीपी 349.04.

पंजाब: स्वास्थ्य खर्चों में आई कमी

पंजाब में कांग्रेस सरकार द्वारा स्वास्थ्य पर किए गए खर्चे पर नजर डालने से सामने आया कि इस खर्चे में 2017 से लगातार कमी आ रही है. 2017-18 में राज्य ने अपने कुल खर्च का 3.8 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवाओं के लिए खर्च किया था. लेकिन 2018-19 में यह घटकर 3.7 प्रतिशत और 2019-20 में 3.3 प्रतिशत रह गया. 2020-21 में 3.6 प्रतिशत के साथ इसमें थोड़ी बढ़ोत्तरी जरूर हुई, लेकिन 2021-22 के बजट के आकलन में यह हटकर 3.4 प्रतिशत रह गया.

हालांकि, पंजाब में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या और अस्पतालों में बिस्तरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. इससे यह कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को स्थापित करने में पंजाब का प्रदर्शन बेहतर रहा है. राष्ट्रीय हेल्थ प्रोफ़ाइल के अनुसार, पंजाब में साल 2017 में 427 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र थे. 2021 में ये केंद्र बढ़कर 527 हो गए. इसी तरह, 2017 में राज्य में कुल बिस्तरों की संख्या 11,834 थी जो 2021 में बढ़कर 21,241 हो गई. इस बीच, अस्पतालों में बाल रोग विशेषज्ञ, सर्जन और ओब-जीन सहित विशेषज्ञों की थोड़ी कमी देखने को मिली. राज्य में 2015 में ऐसे 427 विशेषज्ञों की कमी थी जो 2020 में बढ़कर 433 हो गई.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य और परिवार सर्वेक्षण के अनुसार, स्वास्थ्य संकेतकों जैसे महिलाओं में एनीमिया की व्यापकता के पैमाने पर पंजाब राज्य, राष्ट्रीय रुझानों के साथ खड़ा दिखता है. 2015-16 में यह आंकड़ा 53.5 प्रतिशत था. वहीं 2019-21 में यह बढ़कर 58.7 प्रतिशत हो गया.

पंजाब में शिशु मृत्यु दर 29.2 प्रतिशत से थोड़ी कम होकर 28 प्रतिशत पर पहुंची है. जबकि बच्चों में सीवियर वेस्टेज की दर 5.6 प्रतिशत से गिरकर 3.7 प्रतिशत पर आ गई है. यह तब हुआ जब पूरे भारत का सीवियर वेस्टेज का औसत 7.5 प्रतिशत से बढ़कर 7.7 प्रतिशत हो गया.

इस बीच पांच साल से कम उम्र के बच्चों के ठिगनेपन की दर 25.7 प्रतिशत से गिरकर 24.5 प्रतिशत पर आ गई है.


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