देश की पुलिसिया प्रणाली अक्सर सवालों के घेरे में रहती है।आये दिन पुलिस महकमे द्वारा प्राथमिकी दर्ज़ ना करने की वजह से पीड़ित महीनों अधिकारियों के चौखट पर चक्कर लगाता रहता है। लेकिन कई मामलों में उसे शायद ही न्याय मिल पाता है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में संविधान नागरिकों को कई ऐसे मूलभूत अधिकार देता है। जिनका सटीक उपयोग काफी हद तक पीड़ित को न्याय दिलाने में कारगर साबित होते हैं। इन्हीं अधिकारों में एक अधिकार होता है एफआईआर दर्ज़ कराने का। किसी भी घटना के हो जाने पर पुलिस को एफआईआर दर्ज़ करना ही पड़ता है बशर्ते लोग इसे लेकर जागरूक रहें। FIR/NCR या फिर जीरो एफआईआर क्या होता यह जानना बेहद आवश्यक है क्योंकि घटना के बाद ये चीजें आम लोगों के जीवन में काफी मायने रखती हैं।
क्या होता है एफआईआर ?
अक्सर लोगों द्वारा किसी भी घटना के बाद एफआईआर (FIR) जैसे शब्दों का उच्चारण करते हुए सुना जा सकता है। एफआईआर (First Information report) को हिंदी में प्रथम सूचना रिपोर्ट या फिर प्राथमिकी भी कहा जाता है। किसी अपराध के बाद पीड़ित द्वारा सूचना मिलने पर पुलिस द्वारा प्राथमिकी दर्ज़ की जाती है तथा साथ ही इसकी विवेचना भी आरम्भ की जाती है। प्राथमिकी दर्ज़ होने के बाद विवेचना अधिकारी नियुक्त किया जाता है जो दोनों पक्षों को बारीकी से सुनता है और इन्वेस्टीगेशन कर नतीजे पर पहुंचता है कि आखिर मामला क्या था। कई संगीन मामलों में पुलिस को यह अधिकार होता है कि वह स्वतः संज्ञान लेते हुए प्राथमिकी दर्ज़ कर बिना वारंट के आरोपी को पूछताछ के लिये गिरफ्तार कर सकती है।
एनसीआर (NCR)- नॉन कागजनेबल रिपोर्ट:
एफआईआर (FIR) और एनसीआर (NCR) में बड़ा फर्क होता है। एनसीआर किसी व्यक्ति द्वारा गाली गलौज या ऐसी ही अन्य चीजों जैसे किसी सामान के गुम हो जाने के बाद दर्ज़ की जाती है। उदाहरण के तौर पर यदि किसी का मोबाइल खो गया है तो इस स्थिति में पुलिस एनसीआर (NCR) दर्ज़ करती है। इसी तरह यदि किसी का मोबाइल चोरी हो गया है तब पुलिस को एफआईआर (FIR) दर्ज़ करना पड़ता है। यहाँ यह समझना जरूरी है कि संगीन अपराध ना होने की दशा में ही एनसीआर (NCR) दर्ज़ किया जाता है।
कुछ उदाहरण जब पुलिस द्वारा दर्ज़ की जा सकती है एनसीआर:
हल्के फुल्के मामलों में अक्सर पुलिस एनसीआर दर्ज़ कर दोनों पक्षों के बीच सामंजस्य बैठाने का कार्य कर सकती है।
- मामूली झगड़ा या फिर हाथापाई
- किसी का सामान गुम हो जाने पर।
- मामूली गाली-गालौज होने पर।
- इस तरह के अपराधों में पुलिस बिना जुडीशियल मजिस्ट्रेट के हस्तक्षेप के सीधे गिरफ्तारी नहीं कर सकती है। इन मामलों में वारंट के बिना आरोपी की गिरफ्तारी की जा सकती।
जानिये क्या है जीरो एफआईआर:
कई बार ऐसा भी होता है कि घटना किसी जगह होती है और किसी वजह से लोग मामला उस जगह दर्ज़ नहीं करा पाते। इस स्थिति में दूसरी जगह या दूसरे पुलिस स्टेशन में घटना की सूचना दर्ज़ कराए जाने की स्थिति को ही जीरो एफआईआर ( Zero FIR) कहा जाता है। संगीन अपराध के मामलों में देश के किसी भी हिस्से में केस दर्ज़ कराया जा सकता है। यदि किसी के साथ दिल्ली में कोई वारदात हुई है और किसी कारण से वह यूपी के किसी थाने में अपराध दर्ज़ कराना चाहे तो पुलिस मामला दर्ज़ करने से इनकार नहीं कर सकती है। इस स्थिति में पुलिस जीरो एफआईआर ( Zero FIR) दर्ज़ कर सम्बन्धित पुलिस स्टेशन में मामले को ट्रांसफर कर देती है साथ ही सूचना मिलते ही मामले की जाँच आरम्भ हो जाती है। कई संगीन मामलों में जीरो एफआईआर दर्ज़ होते ही पुलिस मामले की विवेचना आरम्भ कर देती है ताकि सबूत नष्ट होने से पहले नतीजे तक पहुंचा जा सके।
क्या स्वतः ही दर्ज़ कराई जा सकती है एफआईआर?
यह जरूरी नहीं है कि पीड़ित खुद अपने साथ हुई ज़्यादती की सूचना पुलिस को देने जाए। किसी भी घटना के घटित होने पर पीड़ित अपने रिश्तेदार के माध्यम से भी मामला दर्ज़ करा सकता है। इसके अलावा फोन कॉल या फिर ईमेल के माध्यम से भी प्राथमिकी दर्ज़ कराई जा सकती है। एफआईआर दर्ज़ करने के साथ ही उस अधिकारी के हस्ताक्षर वाली एक डुप्लीकेट कॉपी भी पीड़ित को दी जाती है। यह बिल्कुल मुफ्त होता है और अमुक अधिकारी के हस्ताक्षर वाले दस्तावेज भविष्य में प्रूफ के तौर पर काम आते हैं। जब भी किसी के साथ कोई घटना घटित हो तो वह बेधड़क प्राथमिकी के इन तीनों रूपों का उपयोग कर सकता है।