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Believing in the notion of 'live and let live’, Preeti feels it's important to counter and check misinformation and prevent people from falling for propaganda, hoaxes, and fake information. She holds a Master’s degree in Mass Communication from Guru Jambeshawar University and has been a journalist & producer for 10 years.
भारत आज ईडन गार्डन में अपना पहला Pink Ball Test मैच खेल रहा है। मैच कितना ख़ास है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ख़ुद ये मैच देखने के लिए कोलकाता आई हैं। भारत और बांग्लादेश दोनों का ही ये पहला Day-Night टेस्ट मैच है। टेस्ट मैच को और रोमांचक बनाने के लिए 2012 में ICC ने Day-Night टेस्ट मैच को मंजूरी दी थी। 2015 में पहला Day-Night टेस्ट खेला गया था, ऑस्ट्रेलिया–न्यूज़ीलैंड के बीच।
क्यों ख़ास है Pink Ball?
साल 2000 में जब Day-Night टेस्ट मैच की बात शुरू हुई तब सबसे पहली समस्या सामने आई बॉल की चूंकि टेस्ट मैच में दोनों देशों की टीमें सफेद जर्सी में ही खेलती हैं ऐसे में सफेद बॉल का इस्तेमाल मुश्किल था वहीं आमतौर पर लाल बॉल से खेले जाने वाले टेस्ट मैच के लिए दिन–रात वाले फॉर्मेंट में इस रंग का इस्तेमाल मुश्किल भरा था। लाल गेंद मैच ज्यादा लंबे समय तक खेलने की वजह से घिस जाती है और रात को कृत्रिम रौशनी (Artificial lights) में गेंद का रंग भूरा दिखने लगता है जिससे खिलाड़ियों को काफी दिक्कत होती है खासकर बल्लेबाज़ों को। इस समस्या का समाधान तलाशने के लिए कई रंग की गेंदों के साथ प्रयोग किए गए पीला, चमकीला नारंगी और न जाने क्या–क्या? लेकिन सबसे कारगर साबित हुई गुलाबी यानि पिंक बॉल (Pink Ball)। ये बॉल ज्यादा जल्दी नहीं घिसती जिसकी वजह से इसका रंग भी फीका नहीं पड़ता। इस गेंद को देखने में भी खिलाड़ियों को परेशानी नहीं होती और कैमरा भी इसे आसानी से पकड़ लेता है। कृत्रिम रौशनी (Artificial lights) में भी इसका रंग साफ दिखता है। वहीं हवा में नमीं के साथ इसे ज्यादा स्विंग भी मिलता है।
कहां बनती है Pink Ball?
भारत के लिए ये गेंद मेरठ में बनाई जाती है। इसे बनाने वाली कंपनी सेंसपेरील्स ग्रीनलैंड्स (SG) बनाती है। इस एक गेंद की कीमत 2700 Rs. है। ये गेंद इतनी महंगी होती है कि जब दिलीप ट्रॉफी में इस गेंद का इस्तेमाल हुआ था तब BCCI ने खिलाड़ियों को कहा था कि इसे कोई भी खिलाड़ी निशानी के तौर पर न लेकर जाए।
क्या हैं Pink Ball से खेलने की चुनौतियां?
1. इस गेंद के साथ खेलना फीलडर्स के लिए चुनौती भरा हो सकता है विराट कोहली की माने तो यदि खिलाड़ी गेंद को ठीक से नहीं देख पाते हैं तो कई कैच छूट सकती हैं वहीं गेंद में ज्यादा लाख (lacquer) होने की वजह से ये गेंद हवा को भेदते हुए ज्यादा जल्दी नीचे आती है तो अगर खिलाड़ी सतर्क नहीं रहता तो भी मुश्किल हो सकती है।
2. दूसरी बड़ी चुनौती है ओस की चूंकि मैच रात में भी खेला जाएगा ऐसे में गेंद को पकड़ने में खिलाड़ियों को दिक्कत हो सकती है। हालांकि SG ने इस बात का ध्यान रखते हुए गेंद को सिलाई इस प्रकार से दी है कि खिलाड़ी गेंद को ओस में भी पकड़ सकें
3. घरेलू मैचों में ये शिकायत सामने आई थी कि SG की गेंदों का आकार और चमक 80 ओवर के लंबे समय तक नहीं चल पाता। जिसे ध्यान में रखते हुए ईडन गार्डन में ज्यादा घास रखवाई गई है।
इस फॉर्मेट के टेस्ट मैच में अब तक ऑस्ट्रेलिया सबसे बेहतरीन टीम मानी जाती है। अब तक कुल 11 Day-Night टेस्ट मैच खेले जा चुके हैं। इस फॉर्मेट और गेंद के साथ भारत का ये पहला मैच है हालांकि चेतेश्वर पुजारा, ऋद्धिमान साहा और मोहम्मद शमी दिलीप ट्रॉफी के दौरान इस फॉर्मेट और Pink Ball के साथ खेल चुके हैं।
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Believing in the notion of 'live and let live’, Preeti feels it's important to counter and check misinformation and prevent people from falling for propaganda, hoaxes, and fake information. She holds a Master’s degree in Mass Communication from Guru Jambeshawar University and has been a journalist & producer for 10 years.