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सोशल मीडिया पर एक प्रेस कांफ्रेंस का वीडियो काफ़ी वायरल हो रहा है, जिसमें एक व्यक्ति संविधान बचाने की बात कहते और बीजेपी पर निशाना साधते नज़र आ रहे हैं. वीडियो को इस दावे के साथ शेयर किया जा रहा है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में देशभर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ‘इंडिया’ गठबंधन को समर्थन देने की घोषणा की है.
हालांकि, जांच में हमने पाया कि यह वह संस्था – आरएसएस नहीं है जिसे कथित तौर पर भाजपा का वैचारिक संगठन कहा जाता है, बल्कि यह नागपुर की एक अंबेडकरवादी संस्था राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है, जिसके अध्यक्ष जनार्दन मून हैं.
हमने इस रिपोर्ट के जरिए इन दोनों संगठनों की कार्यशैली, ढांचे और उनकी विचारधाओं के बीच के अंतर को स्पष्ट करने की भी कोशिश की है.
वायरल दावे को जिस वीडियो के साथ साझा किया जा रहा है, उसमें एक व्यक्ति एक प्रेस कांफ्रेंस में यह कहते नज़र आ रहे हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने यह निर्णय लिया है कि इस चुनाव में बीजेपी को हराना है, देश को बचाना है..संविधान को बचाना है. इसलिए 400 पार का जो सपना है, उसको कैसे चूर कर सकते हैं. हमारा संविधान कैसे बच सकता है. बीते 10 साल से बीजेपी यहां राज कर रही है. इन दस सालों में हमने क्या खोया है और क्या पाया है. आज हमारी स्थिति क्या है. मतलब संविधान का पूरा उल्लंघन है”. आगे वह विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी के मुद्दे भी उठाते नज़र आ रहे हैं.
इस वीडियो को वायरल दावे के साथ शेयर किया गया है, जिसमें लिखा हुआ है “देशभर में RSS (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) ने दिया INDIA गठबंधन को समर्थन, देशभर के संघियों से INDIA गठबंधन के पक्ष में Vote करने की अपील की”.
Newschecker ने सबसे पहले उक्त वीडियो के लंबे वर्जन को खंगाला तो हमें एक यूट्यूब पोर्टल AWAAZ INDIA TV पर 24 मार्च 2024 को अपलोड किया गया वीडियो मिला. इस वीडियो को देखने पर पता चला कि जो व्यक्ति प्रेस कांफ्रेंस में सबसे पहले बोलते नज़र आ रहे हैं, वे नागपुर में कथित रूप से ऑनलाइन रजिस्टर्ड संस्था RSS के अध्यक्ष जनार्दन मून हैं. इस प्रेस कांफ्रेंस में वे भाजपा पर निशाना साधते हुए नज़र आ रहे हैं.
इसके बाद हमने जनार्दन मून और उनकी संस्था के बारे में जानकारी हासिल की. हमें नेशनल हेराल्ड की वेबसाइट पर 13 अगस्त 2021 को प्रकाशित रिपोर्ट मिली, जिसमें बताया गया था कि नागपुर के एक पूर्व कॉर्पोरटर जनार्दन मून ने नागपुर के चैरिटी कमिश्नर के समक्ष साल 2017 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन नाम से एक संगठन को रजिस्टर कराने के लिए आवेदन दिया था. हालांकि, चैरिटी कमिश्नर ने उस आवेदन को खारिज कर दिया. इसके बाद जनार्दन मून बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ में भी गए और वहां भी उनका आवेदन ख़ारिज हो गया.
जांच में हिंदुस्तान टाइम्स की वेबसाइट पर भी 1 सितंबर 2017 को प्रकाशित रिपोर्ट मिली. इस रिपोर्ट में भी बताया गया था कि जनार्दन मून ने साल 2017 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संगठन नाम से एक संगठन को रजिस्टर कराने के लिए आवेदन दिया. इस दौरान उन्होंने इसके पीछे यह भी हवाला दिया था कि सालों पुरानी हिंदुत्वादी संगठन रजिस्टर्ड नहीं है, इसलिए उन्होंने चैरिटी कमिश्नर के सामने रजिस्ट्रेशन करने के लिए आवेदन दिया है.
हमारी अभी तक की जांच में यह तो साफ़ हो गया था कि जिस “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” ने इस चुनाव में भाजपा का विरोध करने का फैसला किया है, वह हिंदुत्ववादी संगठन “आरएसएस” नहीं है, जो भाजपा को समय समय पर वैचारिक सलाह देती है.
इसके बाद हमने दोनों संगठनों के बीच के अंतर को स्पष्ट करने के लिए दोनों संगठनों के लोगो, कार्यशैली, संस्थागत ढ़ांचे इत्यादि की भी तुलना की, जिसे आप नीचे देख सकते हैं.
दोनों संस्थानों के लोगो में है बड़ा अंतर:
जनार्दन मून की अध्यक्षता वाले “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” का लोगो एक गोल चक्र है, जिसके ऊपर और नीचे हिंदी एवं अंग्रेजी में “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” लिखा हुआ है. वहीं, इस संस्था के झंडे में सबसे ऊपर नीली पट्टी है एवं सबसे नीचे हरी पट्टी है. बीच वाली उजली पट्टी में वह गोल चक्र मौजूद है, जिसका ज़िक्र ऊपर किया गया है.
“राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” जिसके सरसंघचालक मोहन भागवत हैं, उसका कोई चिन्हित लोगो नहीं है. हालांकि, कई जगहों पर भगवा झंडे और भारत माता की तस्वीर मुख्य चिन्ह के रूप में प्रयोग में लाई जाती है. लेकिन हाल के कई कार्यक्रमों में लगे बैनर में हमें “ॐ” और उसके नीचे बड़े अक्षरों में “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” लिखा हुआ दिखा. हमने जब लोगो को लेकर इस संगठन के एक अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य से सवाल किया, तो उन्होंने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हमारा कोई आधिकारिक लोगो नहीं है.
जनार्दन मून की आरएसएस 2017 में बनी, जबकि पुरानी “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” 1925 में अस्तित्व में आई.
मीडिया रिपोर्ट्स में मिली जानकारी के अनुसार, नागपुर के पूर्व कॉर्पोरटर जनार्दन मून ने साल 2017 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नाम की संस्था गठित की थी और उन्होंने 2017 में इस संस्था को रजिस्टर कराने के लिए आवेदन भी दिया था. इसके अलावा, जनार्दन मून ने हमारे साथ बातचीत में भी यह कहा कि उन्होंने साल 2017 में इस संस्था का निर्माण किया था और चूंकि इस नाम से कोई अन्य संस्था सरकार के समक्ष निबंधित नहीं थी. इसलिए हमने इस संस्था को रजिस्टर्ड करने के लिए आवेदन दिया था. हालांकि जनार्दन मून के दावे के अनुसार, उनकी संस्था ऑनलाइन माध्यम से रजिस्टर्ड है.
वहीं, न्यूज रिपोर्ट्स और सांस्कृतिक संगठन आरएसएस की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार, इस संगठन की स्थापना साल 1925 में नागपुर में डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ने की थी. हालांकि, यह संगठन भारत सरकार के किसी भी कार्यालय में निबंधित नहीं है. इसकी पुष्टि संगठन के एक अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य ने भी की. हालांकि, जब हमने उनसे पूछा कि आपने कभी इसकी जरूरत नहीं समझी, तो उन्होंने कहा “हमारा संगठन ब्रिटिश काल में बना था और तब इसकी जरूरत नहीं थी. आजादी के बाद भी हमें रजिस्ट्रेशन कराने की जरूरत महसूस नहीं हुई, क्योंकि हम ना तो राजनीतिक संगठन हैं और ना ही किसी अन्य तरह के संगठन हैं. इसलिए हमें कभी यह जरूरी नहीं लगा”.
दोनों संगठनों के ढ़ांचे भी पूरी तरह से अलग हैं.
साल 2017 में बनी जनार्दन मून की आरएसएस में 13 लोगों के नाम मुख्य सदस्य के तौर पर हैं. इनमें से कुछ लोगों के पास अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष, सचिव और सह-सचिव समेत अन्य पद का जिम्मा है. इसका ज़िक्र उस डॉक्यूमेंट में भी है, जो नागपुर में चैरिटी कमिश्नर के समक्ष आवेदन के तौर पर दिया गया था.
वहीं 1925 में अस्तित्व में आई आरएसएस का संस्थागत ढ़ांचा पूरी तरह से अलग है. इसमें अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या कोषाध्यक्ष जैसा कोई पद नहीं होता है. बल्कि सरसंघचालक, सरकार्यवाह, सह-सरकार्यवाह, शारीरिक शिक्षण प्रमुख, बौद्धिक शिक्षण प्रमुख जैसे पद होते हैं. इस तरह के 24-25 शीर्ष पदों को मिलाकर एक समिति गठित की जाती है, जिसे अखिल भारतीय कार्यकारिणी कहा जाता है. वर्तमान में आरएसएस के सर्वश्रेष्ठ पद सरसंघचालक का जिम्मा डॉ मोहन भागवत के पास है. दोनों संगठनों के बीच का अंतर नीचे देखा जा सकता है।
राजनीतिक आधार पर भी दोनों संगठनों के बीच दिखता है बड़ा अंतर
2017 में जनार्दन मून द्वारा बनाई गई आरएसएस का सीधे-सीधे किसी राजनीतिक पार्टी से कोई संबंध नहीं है और इसकी पुष्टि खुद जनार्दन मून ने भी की है. जनार्दन मून के अनुसार, “हमारे संगठन का ना तो किसी राजनीतिक पार्टी से कोई संबंध नहीं है और ना ही हमारा कोई राजनीतिक विंग है”.
वहीं, 1925 में बनी आरएसएस का राजनीतिक विंग कथित तौर पर केंद्र में सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को माना जाता है. आरएसएस के शीर्ष पदों पर मौजूद लोग भी कई बार भाजपा के साथ अपने संबंधों को स्वीकार कर चुके हैं. इतना ही नहीं देश के मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबंध भी आरएसएस से रहा है. इसके अलावा, भाजपा में संगठन महामंत्री जैसे पदों का जिम्मा अधिकांशतः संघ से आए व्यक्तियों को ही दिया जाता है. हालांकि, कई बार सार्वजनिक मंचों से आरएसएस के सरसंघचालक ने यह कहा कि उनकी संस्था का राजनीति से संबंध नहीं है।
दोनों ही संगठनों का मुख्यालय महाराष्ट्र के नागपुर में ही है. हालांकि, जनार्दन मून के आरएसएस का मुख्यालय सुवर्ण नगर, नारी रोड, नागपुर है. वहीं, डॉ हेडगेवार ने जिस आरएसएस का गठन किया था, उसका मुख्यालय नागपुर के महाल इलाके में हैं. इसके अलावा डॉ हेडगेवार के संगठन का एक आधिकारिक ड्रेस भी है, जिसमें उनके स्वयंसेवक विजयादशमी जैसे कार्यक्रमों में नज़र आते हैं. इस गणवेश में खाकी कलर का पैंट और उजले रंग की शर्ट शामिल है.
इसलिए हमारी रिपोर्ट में मौजूद साक्ष्यों से यह साफ़ है कि जिस संगठन ने इंडिया गठबंधन को समर्थन देने का ऐलान किया है, वह जनार्दन मून का संगठन आरएसएस है जो 1927 में बनाया गया है और यह भाजपा के कथित वैचारिक संगठन “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ” से पूरी तरह अलग है.
इस मुद्दे पर डॉ मोहन भागवत वाले आरएसएस की तरफ से अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है. हालांकि, आरएसएस के मुख्यपत्र पांचजन्य ने एक ट्वीट कर जनार्दन मून की आरएसएस को “फेक आरएसएस” करार दिया है.
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